जिद कुछ कर दिखाने की

जिद कुछ कर दिखाने की

Wednesday, February 6, 2008

महाराष्ट्र नहीं धृतराष्ट्र राज की मांग

राज ठाकरे ध़ृतराष्ट्र की तरह आंखें बंद क्यों किए हुए हैं जिन उत्तरभारतीयों को वे कोस रहे हैं उसी उत्तर भारत ने देश के शीर्ष पद पर एक मराठी महिला को चुना । उत्तरभारतीयों के वोट से ही प़तिभा पाटिल आज राष्ट्रपति हैं । क्या वे ऎसा चाहते हैं कि लतामंगेशकर को केवल मराठी ही सुने और सचिन केवल मुंबई की टीम में ही खिलाए जाएं । यदि राज की बात का जवाब पूरे देश ने दिया तो सिवाय राख के कुछ नहीं बचेगा । सारे मराठी शीर्ष पदों से खदेड दिए जाएंगे ।

महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना के प्रमुख और शिवसेना सुप्रीमो बाल ठाकरे जैसा बनने दिखने की कोशिश में लगे राज ठाकरे के नाम का इस समय बडा हल्ला है । राज ने जय महाराष्ट्र का नारा बुलंद किया । उन्होंने यूपी बिहार के लोगों को महाराष्ट्र के प्रति वफादार रहने की चेतावनी दी है । उन्हें इस बात से भी नाराजगी है कि अमिताभ बच्चन महाराष्ट्र से खाते कमाते हैं तो फिर यूपी में कालेज क्यों खोल रहे हैं वहां का प्रचार प्रसार क्यों करते हैं । राज ने लगभग सारे उत्तरभारतीयों को महाराष्ट्र से चले जाने को कहा है । उनका कहना है महाराष्ट्र में केवल मराठी ही रहेंगे । ९० के दशक में राज जिस तेजी से बाला साहब के उत्तराधिकारी के रुप में उभरे थे पिछले तीन दिनों में ही वे उससे कई गुना तेजी से नीचे गिरे । वे भी बाला साहेब की तरफ दहाडना चाहते हैं ऒर हिंदू शंर की पदवी हासिल करने की कोशिश कर रहे हैं । ७० के दशक में बाला साहेब ने अपनी राजनीति भी इसी मराठी मुद्दे से शुरु की पर वक्त के साथ वे बदले और महाराष्ट्र से हटकर हिंदू राष्ट् के मुद्दे पर आ गए । उन्होंने अपना दायरा बढाया तभी हिंदुस्तानी शेर कहलाए । इसके बाद उनके बेटे उद्धव ने भी मी मुबंईकर जैसा अभियान चलाया ना कि मी मराठी । फिर राज इस नफरत की आग क्यों भडका रहे हैं । दरअसल यह लडाई मराठी या उत्तरभारती की नहीं राज और उद्धव में कौन बाला साहेब जैसा आक़ामक की है ।

देश में बहुत कुछ बदल चुका है । इस मुद्दे कॊ गंभीरता से देखना होगा दिमाग से समझना होगा ना कि हुडदंग की तरह । इतिहास देखिए हिंदुस्तान में कभी जाति और भाषा की लडाई वाले लंबे समय तक सम्मान के हकदार नहीं रहे थोडे समय में ही वे नफरत के शिकार बने और उनका नामलेवा भी नहीं बचा । खालिस्तान आंदोलन चलाने वाले भिडंरावाले कश्मीर में इस्लामिक शासन की मांग करने वाले और पिछडों के मसीहा बनने की कोशिश में मंडल का हथियार चलाने वाले वीपी सिंह इन तीनों को आज वे लोग भी नहीं पूछ रहे जिनके नाम पर इन्होंने ये आंदोलन खडे किए थे । हमें गर्व है कि हिंदुस्तानियॊं ने हमेशा ऎसे नफरतपरस्तों को बाहर का रास्ता दिखाया है । बाकि सारी बातें छोड दीजिए हिंदुवाद का नारा बुलंद करने वाली भाजपा को देखिए । इस देश में ८० फीसदी हिंदू वोटर होने के बाद भी भाजपा अपने बूते केंद में सरकार नहीं बना सकी । उसे उग्र हिंदूवाद छोडना पडा । उन पार्टियों के समर्थन से सरकार बनाना स्वीकारना पडा जो कभी हिंदूवादी विचारधारा के समर्थक नहीं रहे। । यदि देश में यह सब चलता तो यहां हिंदू महासभा विश्व हिंदू परिषद भाजपा की सरकारें चलती पर ऎसा नहीं है ऒर यही हमारी ताक है । इस देश में मुस्लिम राष्ट्रपित सिख प़धानमंत्री और देश की सबसे बडी पार्टी की कमान एक एक ऎसी महिला के हाथ में है जो विदेशी है पर है तो हिंदुस्तान की बहू । राज ठाकरे ये क्यां याद नहीं रखते कि देश के शीर्ष पद पर बैठी महिला महाराष्टीयन हैं देश के सबसे बडे खेल किकेट के सर्वेसर्वा भी मराठी है और इन दोनों को उत्तरभारत ने ही चुना है । क्या राज ठाकरे चाहेंगे कि लता मंगेशकर को सिर्फ मराठी ही सुनें सचिन का पूरा देश बहिष्कार कर दे क्योंकि वे मराठी हैं । मुंबई से यदि उत्तरभारतीयों को कुछ घंटे के लिए भी हटा दिया जाए तो पूरा मुंबई किसी गांव से ज्यादा नजर नहीं आएगा । अंबानी अमिताभ पर इतराता मुंबई मिनटों में कंगाल हो जाएगा । अब अमिताभ के यूपी में पैसा लगाने पर राज को एतराज है क्या पुरखों को याद करना गलत है । अपने बचपन को देखना सहेजना गलत है यदि ये गलत है तो िफर विदेशों में बसे भारतीयों से क्यों देशप़ेम की उम्मीद रखते हैं उनसे इंिडया लोटने और यहां पैसा लगाने की मांग करते हैं । राज ठाकरे को संभलना हॊगा उन्हे ध्यान रखना चाहिए कि इतने हंगामें के बाद भी शिवसना कभी महाराष्ट्र में अकेले के दम पर सत्ता हासिल नहीं कर सकी । नफरत की ये चिंगारी एक दिन रिवर्स गियर लगाएगी और राज का पूरा कैरियर राख हो जाएगा । इस देश ने ऎसे कई नफरती दिमागों को खाक किया है । यह आग जल्द बुझेगी मराठी लोगों की प़ेम से भरी दमकलें ही इसे बुझाइएगी । महाराष्ट्र इस राषट्र में महा ही रहेगा नफरत और सत्ता मोह में अंधा कोई भी धृतराष्ट् उसे हिंदूस्तान से अलग नहीं कर पाएगा ।

Friday, February 1, 2008

सिगरेट के धुंए में उडती इंसानियत

केंदीय स्वास्थ्य मं‌त्री अबुमणि रामदौस ने हाल ही में सुपरस्टार अमिताभ बच्चन और शाहरुख खान से अनुरोध किया कि वे िफल्मों में सिगरेट पीने वाले सीन न करें । उनका मानना है कि युवा पीढी इन दोनों अभिनेताऒं को आइडल मानती है । इनकी स्टाइल और परदे पर किए गए सीन को निजी जिंदगी में अपनाती है । इस अपील पर शाहरुख खान ने जो जवाब दिया वो उनके दंभ और देश के लिए नजरिया दर्शाता है । शाहरुख ने कहा कि इस तरह की रोक मंजूर नहीं यह अभिव्यिक्त की आजादी के खिलाफ है । इससे िफल्मों में रचनात्मकता कम होगी । इस मामले में बिग बी ने भी खामोश रहकर पल्ला झाड लिया । खामोशी के मायने यही है कि वे भी इस तरह की रोक से सहमत नहीं हैं । खुद को तमाम मंचों पर गरीबों का हमदर्द बताने वाले इन महान अभिनेताऒं को अब इंसानियत याद क्यों नहीं आ रही है ।
आखिर क्या कारण है जो केंदीय मंत्री को इन परदे के सूरमाऒं से अपील करनी पडी । कारण साफ है इस देश में अब भी जनता इनको कापी करती है‌ । इनके जैसे बाल इनके जैसी चाल और इनके जैसा दिखने की दीवानगी अब भी कायम है । हीरो के साथ ये सिनेमाघर में तो रोते हंसते ही हैं । उनकी निजी जिंदगी में भी उनके दुख में दुखी और खुशी में मिठाई बांटते हैं । शाहरुख का जन्मदिन देश के कई घरों में मनता है । उनके बेटे का नाम सुनकर कई लोगों ने अपने बेटे का नाम आर्यन रख लिया । उनकी िफल्मों का पहला शो देखने लोग घंटों लाईन में खडे रहते है । कुछ ऎसी ही दीवानगी बिग बी को लेकर रही है । याद कीजिए तेजी बच्चन के निधन के बाद कितने दीवानॊं ने शोकसभा आयोजित कर डाली सिर मुंडवा लिया । अभिषेक की शादी में पूरे देश में सैकडो दीवाने दिखे जिन्होंने मिठाईयां बंटवा दी ।इस दीवानगी को देखते हुए इन परदे के महान लोगों को हकीकत में भी थोडी सी इंसानियत दिखानी चाहिए । तमाम देशी विदेशी अवार्ड और जो मोम के पुतले बनें हैं वह इस देश की जनता के प्यार की वजह से ही मिले हैं । यदि ये अभिनेता यह मानते हैं कि वे अपने दम पर सबकुछ हैं तो िफर जब सरकार इनसे टैक्स वसूली और दूसरे कायदे कानून पालन करवाने का दबाव डालती है तब क्यॊं ये मीडिया में आकर दुखडा रोते है और अपने दीवानों का इस़्तेमाल करके पूरे देश को इमोशनल ब्लैकमेल करते हैं । होना यह चाहिए था कि मंत्री जी की अपील के बाद दोनों अभिनेता मीडिया को बुलाते और कहते कि आज के बाद हम ऎसे सीन नहीं करेंगे । साथ ही सिगरेट के खिलाफ मुहिम में भी सरकार की मदद करेंगे । यदि ये दोनों अभिनेता ऎसा कहते तो कोई भी निर्देशक इनसे ऎसे रोल के लिए कभी नहीं कहता । इन्हे इंसानियत को धुंए में उडाने और दर्द ए डिस्को के बजाए दर्द ए सिगरेट गाना चाहिए ।