राज ठाकरे ध़ृतराष्ट्र की तरह आंखें बंद क्यों किए हुए हैं जिन उत्तरभारतीयों को वे कोस रहे हैं उसी उत्तर भारत ने देश के शीर्ष पद पर एक मराठी महिला को चुना । उत्तरभारतीयों के वोट से ही प़तिभा पाटिल आज राष्ट्रपति हैं । क्या वे ऎसा चाहते हैं कि लतामंगेशकर को केवल मराठी ही सुने और सचिन केवल मुंबई की टीम में ही खिलाए जाएं । यदि राज की बात का जवाब पूरे देश ने दिया तो सिवाय राख के कुछ नहीं बचेगा । सारे मराठी शीर्ष पदों से खदेड दिए जाएंगे ।
महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना के प्रमुख और शिवसेना सुप्रीमो बाल ठाकरे जैसा बनने दिखने की कोशिश में लगे राज ठाकरे के नाम का इस समय बडा हल्ला है । राज ने जय महाराष्ट्र का नारा बुलंद किया । उन्होंने यूपी बिहार के लोगों को महाराष्ट्र के प्रति वफादार रहने की चेतावनी दी है । उन्हें इस बात से भी नाराजगी है कि अमिताभ बच्चन महाराष्ट्र से खाते कमाते हैं तो फिर यूपी में कालेज क्यों खोल रहे हैं वहां का प्रचार प्रसार क्यों करते हैं । राज ने लगभग सारे उत्तरभारतीयों को महाराष्ट्र से चले जाने को कहा है । उनका कहना है महाराष्ट्र में केवल मराठी ही रहेंगे । ९० के दशक में राज जिस तेजी से बाला साहब के उत्तराधिकारी के रुप में उभरे थे पिछले तीन दिनों में ही वे उससे कई गुना तेजी से नीचे गिरे । वे भी बाला साहेब की तरफ दहाडना चाहते हैं ऒर हिंदू शंर की पदवी हासिल करने की कोशिश कर रहे हैं । ७० के दशक में बाला साहेब ने अपनी राजनीति भी इसी मराठी मुद्दे से शुरु की पर वक्त के साथ वे बदले और महाराष्ट्र से हटकर हिंदू राष्ट् के मुद्दे पर आ गए । उन्होंने अपना दायरा बढाया तभी हिंदुस्तानी शेर कहलाए । इसके बाद उनके बेटे उद्धव ने भी मी मुबंईकर जैसा अभियान चलाया ना कि मी मराठी । फिर राज इस नफरत की आग क्यों भडका रहे हैं । दरअसल यह लडाई मराठी या उत्तरभारती की नहीं राज और उद्धव में कौन बाला साहेब जैसा आक़ामक की है ।
देश में बहुत कुछ बदल चुका है । इस मुद्दे कॊ गंभीरता से देखना होगा दिमाग से समझना होगा ना कि हुडदंग की तरह । इतिहास देखिए हिंदुस्तान में कभी जाति और भाषा की लडाई वाले लंबे समय तक सम्मान के हकदार नहीं रहे थोडे समय में ही वे नफरत के शिकार बने और उनका नामलेवा भी नहीं बचा । खालिस्तान आंदोलन चलाने वाले भिडंरावाले कश्मीर में इस्लामिक शासन की मांग करने वाले और पिछडों के मसीहा बनने की कोशिश में मंडल का हथियार चलाने वाले वीपी सिंह इन तीनों को आज वे लोग भी नहीं पूछ रहे जिनके नाम पर इन्होंने ये आंदोलन खडे किए थे । हमें गर्व है कि हिंदुस्तानियॊं ने हमेशा ऎसे नफरतपरस्तों को बाहर का रास्ता दिखाया है । बाकि सारी बातें छोड दीजिए हिंदुवाद का नारा बुलंद करने वाली भाजपा को देखिए । इस देश में ८० फीसदी हिंदू वोटर होने के बाद भी भाजपा अपने बूते केंद में सरकार नहीं बना सकी । उसे उग्र हिंदूवाद छोडना पडा । उन पार्टियों के समर्थन से सरकार बनाना स्वीकारना पडा जो कभी हिंदूवादी विचारधारा के समर्थक नहीं रहे। । यदि देश में यह सब चलता तो यहां हिंदू महासभा विश्व हिंदू परिषद भाजपा की सरकारें चलती पर ऎसा नहीं है ऒर यही हमारी ताक है । इस देश में मुस्लिम राष्ट्रपित सिख प़धानमंत्री और देश की सबसे बडी पार्टी की कमान एक एक ऎसी महिला के हाथ में है जो विदेशी है पर है तो हिंदुस्तान की बहू । राज ठाकरे ये क्यां याद नहीं रखते कि देश के शीर्ष पद पर बैठी महिला महाराष्टीयन हैं देश के सबसे बडे खेल किकेट के सर्वेसर्वा भी मराठी है और इन दोनों को उत्तरभारत ने ही चुना है । क्या राज ठाकरे चाहेंगे कि लता मंगेशकर को सिर्फ मराठी ही सुनें सचिन का पूरा देश बहिष्कार कर दे क्योंकि वे मराठी हैं । मुंबई से यदि उत्तरभारतीयों को कुछ घंटे के लिए भी हटा दिया जाए तो पूरा मुंबई किसी गांव से ज्यादा नजर नहीं आएगा । अंबानी अमिताभ पर इतराता मुंबई मिनटों में कंगाल हो जाएगा । अब अमिताभ के यूपी में पैसा लगाने पर राज को एतराज है क्या पुरखों को याद करना गलत है । अपने बचपन को देखना सहेजना गलत है यदि ये गलत है तो िफर विदेशों में बसे भारतीयों से क्यों देशप़ेम की उम्मीद रखते हैं उनसे इंिडया लोटने और यहां पैसा लगाने की मांग करते हैं । राज ठाकरे को संभलना हॊगा उन्हे ध्यान रखना चाहिए कि इतने हंगामें के बाद भी शिवसना कभी महाराष्ट्र में अकेले के दम पर सत्ता हासिल नहीं कर सकी । नफरत की ये चिंगारी एक दिन रिवर्स गियर लगाएगी और राज का पूरा कैरियर राख हो जाएगा । इस देश ने ऎसे कई नफरती दिमागों को खाक किया है । यह आग जल्द बुझेगी मराठी लोगों की प़ेम से भरी दमकलें ही इसे बुझाइएगी । महाराष्ट्र इस राषट्र में महा ही रहेगा नफरत और सत्ता मोह में अंधा कोई भी धृतराष्ट् उसे हिंदूस्तान से अलग नहीं कर पाएगा ।
जिद कुछ कर दिखाने की
जिद कुछ कर दिखाने की
Wednesday, February 6, 2008
Friday, February 1, 2008
सिगरेट के धुंए में उडती इंसानियत
केंदीय स्वास्थ्य मंत्री अबुमणि रामदौस ने हाल ही में सुपरस्टार अमिताभ बच्चन और शाहरुख खान से अनुरोध किया कि वे िफल्मों में सिगरेट पीने वाले सीन न करें । उनका मानना है कि युवा पीढी इन दोनों अभिनेताऒं को आइडल मानती है । इनकी स्टाइल और परदे पर किए गए सीन को निजी जिंदगी में अपनाती है । इस अपील पर शाहरुख खान ने जो जवाब दिया वो उनके दंभ और देश के लिए नजरिया दर्शाता है । शाहरुख ने कहा कि इस तरह की रोक मंजूर नहीं यह अभिव्यिक्त की आजादी के खिलाफ है । इससे िफल्मों में रचनात्मकता कम होगी । इस मामले में बिग बी ने भी खामोश रहकर पल्ला झाड लिया । खामोशी के मायने यही है कि वे भी इस तरह की रोक से सहमत नहीं हैं । खुद को तमाम मंचों पर गरीबों का हमदर्द बताने वाले इन महान अभिनेताऒं को अब इंसानियत याद क्यों नहीं आ रही है ।
आखिर क्या कारण है जो केंदीय मंत्री को इन परदे के सूरमाऒं से अपील करनी पडी । कारण साफ है इस देश में अब भी जनता इनको कापी करती है । इनके जैसे बाल इनके जैसी चाल और इनके जैसा दिखने की दीवानगी अब भी कायम है । हीरो के साथ ये सिनेमाघर में तो रोते हंसते ही हैं । उनकी निजी जिंदगी में भी उनके दुख में दुखी और खुशी में मिठाई बांटते हैं । शाहरुख का जन्मदिन देश के कई घरों में मनता है । उनके बेटे का नाम सुनकर कई लोगों ने अपने बेटे का नाम आर्यन रख लिया । उनकी िफल्मों का पहला शो देखने लोग घंटों लाईन में खडे रहते है । कुछ ऎसी ही दीवानगी बिग बी को लेकर रही है । याद कीजिए तेजी बच्चन के निधन के बाद कितने दीवानॊं ने शोकसभा आयोजित कर डाली सिर मुंडवा लिया । अभिषेक की शादी में पूरे देश में सैकडो दीवाने दिखे जिन्होंने मिठाईयां बंटवा दी ।इस दीवानगी को देखते हुए इन परदे के महान लोगों को हकीकत में भी थोडी सी इंसानियत दिखानी चाहिए । तमाम देशी विदेशी अवार्ड और जो मोम के पुतले बनें हैं वह इस देश की जनता के प्यार की वजह से ही मिले हैं । यदि ये अभिनेता यह मानते हैं कि वे अपने दम पर सबकुछ हैं तो िफर जब सरकार इनसे टैक्स वसूली और दूसरे कायदे कानून पालन करवाने का दबाव डालती है तब क्यॊं ये मीडिया में आकर दुखडा रोते है और अपने दीवानों का इस़्तेमाल करके पूरे देश को इमोशनल ब्लैकमेल करते हैं । होना यह चाहिए था कि मंत्री जी की अपील के बाद दोनों अभिनेता मीडिया को बुलाते और कहते कि आज के बाद हम ऎसे सीन नहीं करेंगे । साथ ही सिगरेट के खिलाफ मुहिम में भी सरकार की मदद करेंगे । यदि ये दोनों अभिनेता ऎसा कहते तो कोई भी निर्देशक इनसे ऎसे रोल के लिए कभी नहीं कहता । इन्हे इंसानियत को धुंए में उडाने और दर्द ए डिस्को के बजाए दर्द ए सिगरेट गाना चाहिए ।
आखिर क्या कारण है जो केंदीय मंत्री को इन परदे के सूरमाऒं से अपील करनी पडी । कारण साफ है इस देश में अब भी जनता इनको कापी करती है । इनके जैसे बाल इनके जैसी चाल और इनके जैसा दिखने की दीवानगी अब भी कायम है । हीरो के साथ ये सिनेमाघर में तो रोते हंसते ही हैं । उनकी निजी जिंदगी में भी उनके दुख में दुखी और खुशी में मिठाई बांटते हैं । शाहरुख का जन्मदिन देश के कई घरों में मनता है । उनके बेटे का नाम सुनकर कई लोगों ने अपने बेटे का नाम आर्यन रख लिया । उनकी िफल्मों का पहला शो देखने लोग घंटों लाईन में खडे रहते है । कुछ ऎसी ही दीवानगी बिग बी को लेकर रही है । याद कीजिए तेजी बच्चन के निधन के बाद कितने दीवानॊं ने शोकसभा आयोजित कर डाली सिर मुंडवा लिया । अभिषेक की शादी में पूरे देश में सैकडो दीवाने दिखे जिन्होंने मिठाईयां बंटवा दी ।इस दीवानगी को देखते हुए इन परदे के महान लोगों को हकीकत में भी थोडी सी इंसानियत दिखानी चाहिए । तमाम देशी विदेशी अवार्ड और जो मोम के पुतले बनें हैं वह इस देश की जनता के प्यार की वजह से ही मिले हैं । यदि ये अभिनेता यह मानते हैं कि वे अपने दम पर सबकुछ हैं तो िफर जब सरकार इनसे टैक्स वसूली और दूसरे कायदे कानून पालन करवाने का दबाव डालती है तब क्यॊं ये मीडिया में आकर दुखडा रोते है और अपने दीवानों का इस़्तेमाल करके पूरे देश को इमोशनल ब्लैकमेल करते हैं । होना यह चाहिए था कि मंत्री जी की अपील के बाद दोनों अभिनेता मीडिया को बुलाते और कहते कि आज के बाद हम ऎसे सीन नहीं करेंगे । साथ ही सिगरेट के खिलाफ मुहिम में भी सरकार की मदद करेंगे । यदि ये दोनों अभिनेता ऎसा कहते तो कोई भी निर्देशक इनसे ऎसे रोल के लिए कभी नहीं कहता । इन्हे इंसानियत को धुंए में उडाने और दर्द ए डिस्को के बजाए दर्द ए सिगरेट गाना चाहिए ।
Tuesday, January 22, 2008
रिर्टन आफ राम नाम अबकी बार धंधे के नाम
पिछले कुछ महीनों से भगवान राम एक बार िफर मंदिरों से बाहर निकल आए हैं । वे चारों तरफ विराजित हैं । सिनेमा घर कारोबार राजनीति बयानबाजी टेलिविजन यहां तक की देश की सीमाऒं से निकलकर लंका तक वे दर्शन दे रहे हैं । हालांकि भगवान राम तो हर हिन्दू के मन में बसे हैं । पर पिछले २० बरसों में मन के अलावा राम नाम राजनीति और सांपदायिकता की पहचान बने । सत्ता हासिल करने और सत्ता से बाहर होने का ठीकरा भी भगवान के नाम फूटा । ९० के दशक में एकाएक राम नाम की लूट मची । रथयाञा नारों गली मोहल्लों की दीवारों से लेकर संसद तक बस एक ही नाम सुनाई दे रहा था राम । नारे सुनाई दे रहे थे जो राम का नहीं वो किसी काम का नहीं । सौगंध राम की खाते हैं मंदिर वहीं बनाएंगे जैसे सैकडों नारे और मंदिर बनाने का जुनून लिए लाखों लोग सडकों पर उतर गए । इस पूरी रामनामी लडाई में जनता के हाथ कुछ नहीं लगा न मंदिर बना न मिली मन को शांति देश के कई शहर जरुर अशांत हुए और सत्ता मिलते ही लीडर अपने नारों को भूल गए सौगंध को स्वाहा कर दिया और जनता के मुंह सब दो शब्द निकले- हे राम ।
पूरे बीस साल बाद राम िफर अवतरित हुए हैं । पर इन बीस सालों में उदारीकरण ने देश में बहुत कुछ बदला तो राम नाम के अस्ञ का उपयोग भी बदला ञेतायुग में राम वनवास और मर्यादा के लिए जाने गए । ५० के दशक में राम गांधीजी के हे राम के रुप मै । ८० के दशक में रामानंद सागर की रामायणा । ९० के दशक में सत्ता मंदिर और झूठे वादों के गवाह बने । अब २००७ में राम एक नए अवतार हैं । इस बार न कोई वादा न कोई सौगंध सीधे-सीधे धंधे और मुनाफे की बात । कैसे----। देखें सबसे पहले रामभक्त हनुमान पर एनीमेशन मूवी बनी । अच्छी चली तो रिर्टन आफ हनुमान अब बारी पूरी रामायण की । एनडीटीवी इमेजिन ने पूरी रामायण पर एक सीरियल से अपने चैनल को खडा किया करोडो रुपए इसके प़सार पर खर्च किया । इतना रुपया तो अयोध्या आंदोलन पर भी खर्च नहीं हुआ होगा । इसके बाद रामसेतु के मुद़दे को भुनाने की बारी लंका सरकार ने उठाई । लंका सरकार ने कहा हां - हमें पुख्ता सबूत मिल गए हैं कि राम लंका आए थे और सीताजी वाटिका में थी । लंका सरकार ने सोचा होगा जिस राम मंदिर के नाम पर करोडों लोग इकट्ठा हो जाते हैं सरकारें बन जाती है । यदि उस राम के लंका आने की बात कही जाए तो एक अरब के देश से लाखों लोग दर्शन के नाम पर लंका आ जाएंगे । इससे लंका के पर्यटन उद्योग के दिन बदल जाएंगे । आपके पास यदि कुछ रामनामी पुडिया है तो फौरन निकालिए जिंदगी बदल जाएगी । उनकी जिंदगी आपके सामने है जिन्होनें राम के नाम पर हंगामा किया और बहुत कुछ बन गए। ये भजन बिल्कुल सही है-रामजी करेंगे बेडा पार ।
पूरे बीस साल बाद राम िफर अवतरित हुए हैं । पर इन बीस सालों में उदारीकरण ने देश में बहुत कुछ बदला तो राम नाम के अस्ञ का उपयोग भी बदला ञेतायुग में राम वनवास और मर्यादा के लिए जाने गए । ५० के दशक में राम गांधीजी के हे राम के रुप मै । ८० के दशक में रामानंद सागर की रामायणा । ९० के दशक में सत्ता मंदिर और झूठे वादों के गवाह बने । अब २००७ में राम एक नए अवतार हैं । इस बार न कोई वादा न कोई सौगंध सीधे-सीधे धंधे और मुनाफे की बात । कैसे----। देखें सबसे पहले रामभक्त हनुमान पर एनीमेशन मूवी बनी । अच्छी चली तो रिर्टन आफ हनुमान अब बारी पूरी रामायण की । एनडीटीवी इमेजिन ने पूरी रामायण पर एक सीरियल से अपने चैनल को खडा किया करोडो रुपए इसके प़सार पर खर्च किया । इतना रुपया तो अयोध्या आंदोलन पर भी खर्च नहीं हुआ होगा । इसके बाद रामसेतु के मुद़दे को भुनाने की बारी लंका सरकार ने उठाई । लंका सरकार ने कहा हां - हमें पुख्ता सबूत मिल गए हैं कि राम लंका आए थे और सीताजी वाटिका में थी । लंका सरकार ने सोचा होगा जिस राम मंदिर के नाम पर करोडों लोग इकट्ठा हो जाते हैं सरकारें बन जाती है । यदि उस राम के लंका आने की बात कही जाए तो एक अरब के देश से लाखों लोग दर्शन के नाम पर लंका आ जाएंगे । इससे लंका के पर्यटन उद्योग के दिन बदल जाएंगे । आपके पास यदि कुछ रामनामी पुडिया है तो फौरन निकालिए जिंदगी बदल जाएगी । उनकी जिंदगी आपके सामने है जिन्होनें राम के नाम पर हंगामा किया और बहुत कुछ बन गए। ये भजन बिल्कुल सही है-रामजी करेंगे बेडा पार ।
Wednesday, January 16, 2008
विजय माल्या के बैलून से गट्टू के सैलून तक
इस साल हिंदी पत्रकारिता में बडा बदलाव आने वाला है। सेंसेक्स की तरह हिंदी मीडिया भी उछाल पर है। २००७ में भी दैनिक जागरण अमर उजाला राजस्थान पत्रिका दैनिक भास्कर ने नए काम किए। सभी अखबारों ने अपने मूल अखबार के अलावा कुछ नए पुलआउट टेबलायड या यूथ को टारगेट करते हुए नए दैनिक शुरु किए। पत्रिका ने डेली न्यूज तो जागरण ने आई नेक्सट और अमर उजाला ने कॉम्पेक्ट पबि्लश किया।
यह साल बिजनेस अखबारॊं के नाम रहेगा। इकानामिक टाइम्स बिजनेस स्टेंडर्ड और जागरण भी सीएनबीसी के साथ मिलकर हिंदी में बिजनेस अखबार ला रहे हैं। यह शुभ संकेत है। पत्रकारों आम पाठक और हिंदी भाषी जनता के लिए। इंगि्लश पत्रकारों की बिरादरी में अब हिंदी की अनदेखी नहीं की जा सकेगी। जब बडे समूह हिंदी में पैसा लगा रहे हैं इसका मतलब हिंदी मीडिया में अभी धंधे की बडी गुंजाइश है। कुछ समय पहले एक बडे चैनल के एडिटर इन चीफ ने मंच से कहा था कि हिंदी मीडिया का कोई भविष्य नहीं है। वहां बेहद घटिया खबरें रहती है। जबकि ये साहब खुद अपने समूह का एक हिंदी चैनल भी चला रहे हैं एक बडे हिंदी अखबार के भी चीफ बने हुए है।
खैर छोडिए बिजनेस के ये तीन बडे हिंदी अखबार बाजार की इकानामी और हिंदी की साख दोनों को जान जाएंगे। ऎसा नहीं है कि देश में पहली बार हिंदी में कोई बिजनेस अखबार आ रहा है । इससे पहले भी अमर उजाला कारोबार और नइदुनिया के भावताव ने कोशिश की। पर ये दोनो अखबार ऐसे समय निकाले गए जब आम हिंदी पाठक उदारीकरण को तबाही से जोडकर देखा रहा था। उसके लिए नए तरह के कारोबार विदेशी कंपिनयां एक दानव थी जो सब पैसा खा जाएगी।
निसंदेह दोनो अखबार समूह नई सोच के लिए जाने जाते हैं बिजनेस अखबार भी इसी सोच का एक अंग था। याद कीजिए वेबदुनिया का हिंदी पोर्टल जब शुरु हुआ हिंदी के धुरंधरों ने उसे नकार दिया। आज उसकी हैसियत देखिए भावताव और काराबार जितनी तेजी से समेटे गए वो निशिचत गलत रहा। कुछ दिन और चलते तो आज माहौल कुछ अलग दिखता आज आम आदमी शेयर बाजार की तेजी मंदी समझ रहा है देख रहा है पैसा लगा रहा है इस बदलाव के पीछे बडा हाथ सीएनबीसी आवाज चैनल का भी है । मैं जिस सेलून में जाता हूं वहां का मालिक मामूली पढा लिखा आदमी है । पर दुकान पर लोगों के चेहरे चमकाते चमकाते आवाज चैनल पर बाजार के उतार चढाव समझता गया ऒर पिछले एक साल में वह अपनी दुनिया चमका चुका है । दुकान चमकी गाडी पैसा ऒर रोज वह बडे दांव लगा रहा है।
आम आदमी की यह बदलती दुनिया में कई सेलून और छोटे दुकानदार बडे कहे जाने वाले शेयर के कारोबार की बारीकी समझ रहे हैं। हिंदी बिजनेस अखबारों का आना जानकारी बढाने के साथ साथ धोखे से भी बचाएगा अभी कई पढे लिखे लोगों से भी धंधेबाज धोखा कर रहे हैं । यह डीमेट एकाउंट की फीस से लेकर शेयर दलाली तक में है । हिंदी अखबार अपने मार्केट के साथा देश की इकानामी में भी बडा बदलाव लाएंगे । वे अपने लाभ के साथ साथ आम आदमी यानी गट्टू को भी बडा कारोबारी बनाएंगे।
अब तक गट़टू ने सिर्फ घर और दुकान की बाहरी दीवार पर ही कुंकुम से शुभ लाभ लिखा और देखा। अब यह सब उसके घर की बाहरी दीवारों पूजाघर ऒर दुकान के पटिए से निकालकर उसकी जेब पर भी लाभ का शुभ गणित बैठाएंगे। कई गट्टू इंतजार में हैं मौका तो दो। वे भी बैलून में उडेंगे बस देखते रहिए।
यह साल बिजनेस अखबारॊं के नाम रहेगा। इकानामिक टाइम्स बिजनेस स्टेंडर्ड और जागरण भी सीएनबीसी के साथ मिलकर हिंदी में बिजनेस अखबार ला रहे हैं। यह शुभ संकेत है। पत्रकारों आम पाठक और हिंदी भाषी जनता के लिए। इंगि्लश पत्रकारों की बिरादरी में अब हिंदी की अनदेखी नहीं की जा सकेगी। जब बडे समूह हिंदी में पैसा लगा रहे हैं इसका मतलब हिंदी मीडिया में अभी धंधे की बडी गुंजाइश है। कुछ समय पहले एक बडे चैनल के एडिटर इन चीफ ने मंच से कहा था कि हिंदी मीडिया का कोई भविष्य नहीं है। वहां बेहद घटिया खबरें रहती है। जबकि ये साहब खुद अपने समूह का एक हिंदी चैनल भी चला रहे हैं एक बडे हिंदी अखबार के भी चीफ बने हुए है।
खैर छोडिए बिजनेस के ये तीन बडे हिंदी अखबार बाजार की इकानामी और हिंदी की साख दोनों को जान जाएंगे। ऎसा नहीं है कि देश में पहली बार हिंदी में कोई बिजनेस अखबार आ रहा है । इससे पहले भी अमर उजाला कारोबार और नइदुनिया के भावताव ने कोशिश की। पर ये दोनो अखबार ऐसे समय निकाले गए जब आम हिंदी पाठक उदारीकरण को तबाही से जोडकर देखा रहा था। उसके लिए नए तरह के कारोबार विदेशी कंपिनयां एक दानव थी जो सब पैसा खा जाएगी।
निसंदेह दोनो अखबार समूह नई सोच के लिए जाने जाते हैं बिजनेस अखबार भी इसी सोच का एक अंग था। याद कीजिए वेबदुनिया का हिंदी पोर्टल जब शुरु हुआ हिंदी के धुरंधरों ने उसे नकार दिया। आज उसकी हैसियत देखिए भावताव और काराबार जितनी तेजी से समेटे गए वो निशिचत गलत रहा। कुछ दिन और चलते तो आज माहौल कुछ अलग दिखता आज आम आदमी शेयर बाजार की तेजी मंदी समझ रहा है देख रहा है पैसा लगा रहा है इस बदलाव के पीछे बडा हाथ सीएनबीसी आवाज चैनल का भी है । मैं जिस सेलून में जाता हूं वहां का मालिक मामूली पढा लिखा आदमी है । पर दुकान पर लोगों के चेहरे चमकाते चमकाते आवाज चैनल पर बाजार के उतार चढाव समझता गया ऒर पिछले एक साल में वह अपनी दुनिया चमका चुका है । दुकान चमकी गाडी पैसा ऒर रोज वह बडे दांव लगा रहा है।
आम आदमी की यह बदलती दुनिया में कई सेलून और छोटे दुकानदार बडे कहे जाने वाले शेयर के कारोबार की बारीकी समझ रहे हैं। हिंदी बिजनेस अखबारों का आना जानकारी बढाने के साथ साथ धोखे से भी बचाएगा अभी कई पढे लिखे लोगों से भी धंधेबाज धोखा कर रहे हैं । यह डीमेट एकाउंट की फीस से लेकर शेयर दलाली तक में है । हिंदी अखबार अपने मार्केट के साथा देश की इकानामी में भी बडा बदलाव लाएंगे । वे अपने लाभ के साथ साथ आम आदमी यानी गट्टू को भी बडा कारोबारी बनाएंगे।
अब तक गट़टू ने सिर्फ घर और दुकान की बाहरी दीवार पर ही कुंकुम से शुभ लाभ लिखा और देखा। अब यह सब उसके घर की बाहरी दीवारों पूजाघर ऒर दुकान के पटिए से निकालकर उसकी जेब पर भी लाभ का शुभ गणित बैठाएंगे। कई गट्टू इंतजार में हैं मौका तो दो। वे भी बैलून में उडेंगे बस देखते रहिए।
Thursday, January 10, 2008
धड़म-धड़म धड़ैया रे
शनिवार की रात जिस भी क्रिकेटप्रेमी ने मैच नहीं देखा उसने बहुत कुछ खो दिया। कई सालों बाद पूरी इंडियन टीम जोश में दिखी। ऐसा जोश इससे पहले लार्डस के मैदान में देखा था जब गांगुली ने शर्ट उतार फेकी थी। कल जोश में आग भी थी। अरे आग नहीं शोले थे क्योंकि आग अब ठंडी पड़ चुकी है(रामगोपाल वर्मा वाली)। लंबे समय बाद खिलाड़ियों में जीत की भूख सबको धो डालने का जज्बा अौर हमारे नामी खिलाड़ियों (सचिन अौर सौरव) को यह बताने का जुनून भी साफ दिख रहा था कि आने वाला कल इसी फायर ब्रिग्रेड का है।
फिल्म अोम्कारा का गाना धड़म-धड़म धड़ैया रे सबसे बड़े लड़ैया रे शायद इसी टीम के लिए लिखा गया था। पिछले तीन साल से क्रिकेट बिरादरी हम पर हंस रही थी। हमें बिना जोश अौर किलिंग स्पिरिट वाली बुजुर्ग की टीम कहा गया। पहले दक्षिण अफ्रीका फिर आस्ट्रेलिया को पटककर हमारे युवाअों ने बता दिया कि हम धुरंधरों को पटकने में माहिर हैं। पहले जब विरोधी टीम के विकेट गिरते थे तो द्रविड़ अपनी जगह पर खड़े-खड़े हाथ हिलाते थे। सचिन कड़ा चढ़ाते थे अौर सौरव नाखून चबाते दिखते थे। मानों कह रहे हों कहां विकेट ले लिया। शनिवार को ये तीनों ग्रेट प्लेयर टीम में नहीं थे पर टीम पूरी तरह से ग्रेट इंडियन दिखी। ये साफ हो गया कि ग्रेट खिलाड़ी के मैदान में खड़े रहने से मैच नहीं जीते जाते। मैच जीते जाते हैं युवराज जैसा जोश धोनी जैसी चपलता रुद्रप्रताप के रौद्र पठान की पठानी अौर भज्जी के भांगड़ के जुनून श्रीसंथ ने जब विकेट लिया तो वो कैसे तूफान की तरह लहरा रहे थे। युवराज ने मुट्ठी लहराई अौर इतने उछले मानो कंगारुअों की छाती पर चढ़कर उन्हें मुट्ठियों से पीटने का इरादा हो।
जिन खिलाड़ियों को ट्वेंटी-२० में केवल टाइम पास के लिए भेजा गया था उन्होंने सारे बड़े खिलाड़ियों को टाइम आउट कर दिया। संभव है कि आने वाले समय में यही टीम स्थायी हो जाए। आस्ट्रेलिया से इन युवाअों की जीत ने इंडिया में कप्तानी अौर सम्मान के लिए लड़ रहे बड़े खिलाड़ियों की भी नींद उड़ा दी है। उन्हे अपने घर के सोफे पर वही मैदानी जुमला याद आ रहा होगा- ये क्यों जीत गए या कह रहे होंगे- ये तो गली क्रिकेट है। यहां चल गए बड़े मैचों में कुछ नहीं कर पाएंगे। एक बात समझ लीजिए मैच २० अोवर का हो या ५० का इससे फर्क नहीं पड़ता मैदान में खिलाड़ी की आंखें अौर उसके तेवर बता देते हैं कि वो कितना शानदार खिलाड़ी है। अोवर अौर समय भले ही कम हो गया हो पर जीत की भूख बनी रहनी चाहिए। फटाफट क्रिकेट में जो धड़म-धड़म बेटिंग करे अौर अंत तक लड़े वही बनता है विजेता। इस पैमाने पर यह इंडियन टीम है सबसे बड़ी लड़ैया उम्मीद है कि पाकिस्तान को यह भी टीम ऐसे ही चबा डालेगी।
फिल्म अोम्कारा का गाना धड़म-धड़म धड़ैया रे सबसे बड़े लड़ैया रे शायद इसी टीम के लिए लिखा गया था। पिछले तीन साल से क्रिकेट बिरादरी हम पर हंस रही थी। हमें बिना जोश अौर किलिंग स्पिरिट वाली बुजुर्ग की टीम कहा गया। पहले दक्षिण अफ्रीका फिर आस्ट्रेलिया को पटककर हमारे युवाअों ने बता दिया कि हम धुरंधरों को पटकने में माहिर हैं। पहले जब विरोधी टीम के विकेट गिरते थे तो द्रविड़ अपनी जगह पर खड़े-खड़े हाथ हिलाते थे। सचिन कड़ा चढ़ाते थे अौर सौरव नाखून चबाते दिखते थे। मानों कह रहे हों कहां विकेट ले लिया। शनिवार को ये तीनों ग्रेट प्लेयर टीम में नहीं थे पर टीम पूरी तरह से ग्रेट इंडियन दिखी। ये साफ हो गया कि ग्रेट खिलाड़ी के मैदान में खड़े रहने से मैच नहीं जीते जाते। मैच जीते जाते हैं युवराज जैसा जोश धोनी जैसी चपलता रुद्रप्रताप के रौद्र पठान की पठानी अौर भज्जी के भांगड़ के जुनून श्रीसंथ ने जब विकेट लिया तो वो कैसे तूफान की तरह लहरा रहे थे। युवराज ने मुट्ठी लहराई अौर इतने उछले मानो कंगारुअों की छाती पर चढ़कर उन्हें मुट्ठियों से पीटने का इरादा हो।
जिन खिलाड़ियों को ट्वेंटी-२० में केवल टाइम पास के लिए भेजा गया था उन्होंने सारे बड़े खिलाड़ियों को टाइम आउट कर दिया। संभव है कि आने वाले समय में यही टीम स्थायी हो जाए। आस्ट्रेलिया से इन युवाअों की जीत ने इंडिया में कप्तानी अौर सम्मान के लिए लड़ रहे बड़े खिलाड़ियों की भी नींद उड़ा दी है। उन्हे अपने घर के सोफे पर वही मैदानी जुमला याद आ रहा होगा- ये क्यों जीत गए या कह रहे होंगे- ये तो गली क्रिकेट है। यहां चल गए बड़े मैचों में कुछ नहीं कर पाएंगे। एक बात समझ लीजिए मैच २० अोवर का हो या ५० का इससे फर्क नहीं पड़ता मैदान में खिलाड़ी की आंखें अौर उसके तेवर बता देते हैं कि वो कितना शानदार खिलाड़ी है। अोवर अौर समय भले ही कम हो गया हो पर जीत की भूख बनी रहनी चाहिए। फटाफट क्रिकेट में जो धड़म-धड़म बेटिंग करे अौर अंत तक लड़े वही बनता है विजेता। इस पैमाने पर यह इंडियन टीम है सबसे बड़ी लड़ैया उम्मीद है कि पाकिस्तान को यह भी टीम ऐसे ही चबा डालेगी।
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