जिद कुछ कर दिखाने की

जिद कुछ कर दिखाने की

Friday, December 9, 2011

मिड डे के संपादक क े इस इस्तीफे को पढ़कर आप भी रो देंगे

दर्जनों मीडियाकर्मियों की नौकरी चली गयी लेकिन मेनस्ट्रीम मीडिया के किसी भी मंच पर एक लाइन की खबर नहीं : मिडे डे के संपादक दीप हलधर ने अपनी नौकरी जाने की बात जिस तरह से अपनी एफबी वॉल पर लिखी है, पढ़कर आंखों में आंसू आ गए। मेरा मन दहाड़े मारकर रोने का हो रहा है। बहुत कम ऐसे मौके होते हैं, जब अंग्रेजी की पंक्तियों को पढ़कर आंखों में अपने आप आंसू आते हों। आज तो रहा नहीं जाएगा, मैं तो जार-जार रोउंगा। एक-एक पंक्ति पढ़ते हुए हिचकी निकल रही है। हलधर ने लिखा कि उनसे कागजातों पर गलत तरीके से साइन कराया गया और उन्होंने किया। आप भी पढ़िए न, मेरी बात पर आपको यकीन न हो तो...


A big thanks to my ex-bosses Abhijit Majumder, Pradyuman Maheshwari and Avirook Sen for taking time out and showing concern for what happened in Midday Delhi. Big hug to my brother Yasser Ali for posting that comment. Very reckless, Yaseerbhai, but feels good. I have been in the game long enough to know how hard it is to be working in the media and still stick your neck out for others. And Jayita Sinha, I am trying to achieve nothing through all this. I am just pissed at the way two editions were shut through an insensitive email. And no one bothered to even address the teams. And then asked to sign an illegal document. There is a way to deal with such sensitive issues. Maybe MiD DAY management needs to watch that George Clooney film Up in the Air!




मिड डे का ये पहला मौका नहीं है कि जब उसने बेरहमी से संस्करण बंद करके दर्जनों पत्रकारों को सड़क पर ला दिया। साल २००८-०९ में हमने सैंकड़ों मीडियाकर्मियों का करिअर और कुछ की तो समझिए जिंदगी ही खत्म होते देखी है। व्ऑइस ऑफ इंडिया चैनल का नाम सुनकर मुझे भोपाल गैस कांड की याद आ जाती है। मिड डे के पत्रकार अभी सोच रहे होंगे कि काश वो किसी अखबार/मीडिया संस्थान में काम करने के बजाय किसी फैक्ट्री या चीनी मिल में काम कर रहे होते। कुछ नहीं तो रातोंरात रोजी-रोटी छिन जाने की खबर अखबार और चैनलों में तो आती। गांव-देहात में आस लगायी मां को पता तो चल पाता कि मेरा बेटा बेरोजगार हो गया है, अब लाल इमली इस साल नहीं, अगले साल लेंगे। सच में कितने निरीह हैं हमारे देश के पत्रकार जिनके बेरोजगार होने से लेकर मरने तक की खबर अपने ही मीडिया का हिस्सा नहीं बनने पाती। मिड डे का दिल्ली और बैंग्लोर संस्करण बंद कर दिया गया। दिल्ली के संपादक दीप हलधर सहित दर्जनों मीडियाकर्मियों की नौकरी चली गयी लेकिन मेनस्ट्रीम मीडिया के किसी भी मंच पर एक लाइन की खबर नहीं है। यही काम किसी दूसरे सेक्टर में होता तो मीडिया का सरोकार उफान मारने लग जाता। इतना ही नहीं, देश के बाहर के किसी अखबार को लेकर ऐसी घटना होती तो इंटरनेशनल एजेंड़ा, देश-दुनिया और सात समंदर पार जैसे कार्यक्रमों की प्रमुख खबर बनती। मीडिया का सरोकार मीडियाकर्मियों के काम नहीं आता। ठीक उसी तरह नाइकी, रिबॉक के जूते बनानेवाला मजदूर उस जूते को कभी पहन नहीं पाता।.


विनीत कुमार के फेसबुक वॉल से साभार

वीरू के शोले, जय हो



सचिन के शब्दों को सहवाग ने सही साबित कर दिया। सहवाग ने अपने ओपनिंग पार्टनर का रिकॉर्ड भी तोड़ा और उनकी बात का मान भी रखा। खुद सचिन ने कहा था सहवाग ही मेरा 200 का रिकार्ड तोड़ सकते हैं। क्रिकेट में हर रिकॉर्ड टूटने को बनता है। क्रिकेट के भगवान भी इससे नहीं बच सकते। किसने सोचा था कि 300 गेंदों की पारी कोई एक बल्लेबाज 200 रन बना सकेगा। पर उस सोच को पूरी तरह रौंदते हुए सचिन तेंदुलकर ने 24 फरवरी 2010 को ग्वालियर में दोहरा शतक बनाया। तब पूरी दुनिया के क्रिकेट दीवाने बोले-असंभव को संभव कर दिया। अब इस रिकॉर्ड को कोई नहीं तोड़ सकेगा। पर क्रिकेट के देवता का यह कारनामा सिर्फ 21 महीने में पुराना पड़ गया। रिकॉर्ड बुक में अब नया नाम उनसे ऊपर दर्ज हो गया। वीरेंद्र सहवाग। सचिन अब नंबर दो पर आ गए। इसके मायने यह नहीं है कि अब सचिन महान खिलाड़ी या भगवान नहीं रहे। सचिन अब भी महान हैंं। सिर्फ उनके बनाए रनों के रिकॉर्ड को एक खिलाड़ी ने पीछे छोड़ा है सचिन को नहीं। सहवाग ने इंदौर के होलकर स्टेडियम में चौका लगाकर 200 रन पूरे किए। इस रिकॉर्ड में कई बातें समान है, जो अपने आप में रोचक है। जैसे वन-डे इतिहास के दोनों दोहरे शतक भारतीयों ने बनाए। दोनों दोहरे शतक ओपनिंग बल्लेबाजों ने बनाए। दोनों ही भारत की जमीं पर और मध्यप्रदेश के शहरों में लगे। दोनों ही डे-नाइट के मैच थे। सचिन और सहवाग दोनों ने ऐसे वक्त ये शतक लगाए जब तमाम आलोचक और सहयोगी भी कहने लगे थे कि ये चूक गए हैं, उम्र उनपर हावी है, ये अब बड़े स्कोर नहीं बना सकते। सचिन ने जब दोहरा शतक लगाया तब वे भी ऐसी ही आलोचना के शिकार थे और आज सहवाग का भी हाल यही है। दोनों ने दिखा दिया कि शून्य से शिखर पर जाने का जज्बा उनमें अब भी है। हर दिन वे नई इबारत और नए रिकॉर्ड बनाने का माद्दा रखते हैं। क्रिकेट के खेल में 33 वह उम्र है जब आपको बल्ला खूंटी पर टांग देने की सलाह दी जाती है। खिलाड़ी रन आउट होने लगते हैं। गेद से नजरें चूक जाना सामान्य बात हो जाती है। पैंतीस की उम्र तक पहुंचते-पहुंचते सिर्र्फरिकॉर्ड और पुराने दिनों की यादगार पारियां आपके पीछे होती हैं। लेकिन सहवाग यहां भी सबसे अलग नजर आते हैं वे कुछ भी पीछे नहीं छोडऩा चाहते। उपलब्धियों के साथ दौड़ लगाते हुए वे उम्र से होड़ लेते नजर आते हैं। उनके बारे में सोचते हुए एक ही शब्द उभरता है-अद्भुत। जिस सहजता से वे बल्ले को घुमाते हैं और जिस ढंग से उन्होंने अपने कैरियर को गढ़ा है वह चौंकाने वाला है। क्रिकेट के तमाम स्टाइलिश बल्लेबाज उन्हें नकार देते हैं, क्रिकेट बुक के हिसाब से उनकी बल्लेबाजी एकदम उलट है। वे अपने अंदाज में खेलते हैं, न उन्हें कोई स्टाइल की परवाह है, न स्टांस की न कोई खास तरीके की उनका तो एक ही अंदाज है गेंदबाज की धुलाई। गेंद बाउंड्री पार करे, रन बने, टीम जीते। वो रन कैसे बने, कौन सा शॉट खेला इस सबका हिसाब किताब वीरू नहीं रखते। उनके शॉट अपने हैं और एकदम नए हैं। आप क्रिकेट की किताब में ढूंढते रहिए उस शॉट का नाम। सिर्फ सिर खुजाते रहेंगे वो कहीं नहीं मिलेगा क्योंकि वो वीरू का अपना शॉट, अपना स्टाइल है। सहवाग का रिकॉर्ड और इतने लंबे समय तक टीम में टिके रहना इसलिए भी महत्व रखता है कि उन्होंने देश के टॉप बल्लेबाजों के दौर में अपनी जगह बनाई है। सौरव-सचिन की ओपनिंग जोड़ी के दौर में किसी तीसरे खिलाड़ी का ओपनिंग में जगह बना पाना असंभव था। उस दौर में भी सहवाग जमे रहे और लगातार आगे बढ़े। कई दौर ऐसे भी आए जब उनके फुटवर्क, हेड मूवमेंट पर सवाल उठे। कहा गया कि दुनिया के सारे गेंदबाज जान गए हैं कि सहवाग को एक ही स्टाइल में खेलना आता है और अब वे कभी उबर नहीं पाएंगे। उनका दौर खत्म हो गया। ये दोहरा शतक तमाम आलोचकों को बाउंड्री के बाहर का रास्ता दिखाता है। सहवाग एक बार मैदान पकड़ लेते हैं तो फिर आसानी से मैदान नहीं छोड़ते। गेंदबाज उनके आगे दम तोड़ देते हैं, वे शतक के करीब जाकर भी अपना स्वाभाविक खेल खेलते हैं। कभी कोई प्रेशर उनके ऊपर नहीं दिखता। मैच बड़ा हो या छोटा रन 4 हो या 99 उनके खेलने के अंदाज में कोई फर्क नहीं पड़ता। भारतीय क्रिकेट के दो ही जय और वीरू हैं सचिन और सहवाग। दोनों ने हमेशा बल्लेबाजी से मैदान में शोले बरसाए हंै। जय जयकार हासिल की है। जब भी दोहरे शतक की बात आएगी जय-वीरू दोनों का नाम साथ ही आएगा।



Friday, December 2, 2011

तो थप्पड़ो का सिलसिला शुरू हो जाएगा

पिछले सप्ताह केंद्रीय मंत्री शरद पवार को एक युवक ने थप्पड़ जड़ दिया। कारण। उसने कहा कि मंहगाई बढ़ रही है और ये (मंत्री महोदय) जवाब देने को भी तैयार नहीं। हर सवाल पर जवाब एक ही -मुझे नहीं पता। शरद पवार ने पहली बार महंगाई के मुद्दे पर पल्ला नहीं झाड़ा है। इसके पहले भी कई मौकों पर वे महंगाई का मजाक उड़ा चुके हैं। कभी कहा मैं भगवान नहीं हूं , कभी बोले इसे कंट्रोल करना हमारे बस में नहीं, कभी उछलकर बोल पड़े लोग ज्यादा खा रहे हैं इसलिए महंगाई बढ़ रही है। एक आम हिंदुस्तानी जो सुबह शाम दो सूखी रोटी की जुगाड़ क े लिए परेशान है, उसे अपने नेता ऐसे जवाब देंगे तो क्या होगा? थप्पड़ मारना सहीं नहीं है, पर आम आदमी की बेबसी का मजाक उड़ाना, उसके दर्द को अंतरराष्टï्रीय बाजार के भरोसे छोड़ देना। उसें रोटी मिल सके इसकी व्यवस्था करने के बजाए उसे मुद्रा स्फीती, महंगाई दर, आर्थिक व़द्घि की खबरें दिखाना। मंच पर चढ़कर सरकारी आंकड़े दिखाना, भूख से मरते आदमी के सामने अकड़ से खड़े होकर देश की सम़द्घि, वैभव के गुण गाना ऐसे ही कई और थप्पड़ पैदा करेे तो बड़ी बात नहीं। इस सरकार के अलावा विपक्ष में बैठे राष्टï्रीय नेता भी केवल अपने एसी कमरों में बैठकर चिंता जताते हैं। नमक लगे काजू, बादाम के शर्बत के साथ महंगाई पर चिंतन करते हैं और बाहर आकर कहते हैं- आम आदमी ज्यादा खाने लगा है इसलिए महंगाई बढ़ रही है। ये मजाक नहीं तो क्या है। सरकार खुद को करोड़ो के घोटाले को बढ़ावा दे रही है, केंद्र में सत्ता के खिलाफ अभियान उठाने वाला विपक्ष अपने सत्ता वाले राज्यों में भ्रष्टïाचार की खदाने खोलकर बैठा है। यात्राओं के नाम पर राजनीति और गरीबों का दर्द बांटने का ड्रामा हो रहा है। गरीबों, दलितों के हित की बात करने वाली बसपा हाथी, पार्क, अपनी पार्टी की संभाओं के बड़े तंबू लगवाने में पैसा फूंक रही है। जबकि उनके राज्य में दलित रोटी को तरस रहे हैं। गाजियाबाद और आगरा में विवाह समारोह में रोटी खाने को घुसे किशोरों को भीड़ ने पीट पीटकर मार डाला। ये है बहुजन की जीत। भाजपा शासित राज्यों में खदानों से पैसा उलीचा जा रहा है, लोकायुक्त की नाक के नीचे मंत्री अपराध कर रहे है। कांग्रेस शासित राज्यों में सीड़ी सामने आ रही है तो कहीं मंत्री शहीदों का पैसा खा रहे हैं। अन्ना के आंदोलन की भी चमक ठंडी पड़ गई है। उनके सिपाहसालार भी जनता को ही लूट रहे हैं। ऐसे में पवार को पड़ा थप्पड़ नेताओं की पूरी कौम के लिए एक अलर्ट है। संभलिए, देश सत्तर के दशक की तरह फिर गुस्से में हैं। ऐसे थप्पड़ृों की बौछार हर गली मोहल्ले में दिखाई दे सकती है। जल्दी ही सरकार और नेता नहीं सुधरे तो इस देश का हर आदमी एंग्री यंगमैन बन जाएगा और हर नेता के गाल पर एक थप्पड़ होगा।