सचिन के शब्दों को सहवाग ने सही साबित कर दिया। सहवाग ने अपने ओपनिंग पार्टनर का रिकॉर्ड भी तोड़ा और उनकी बात का मान भी रखा। खुद सचिन ने कहा था सहवाग ही मेरा 200 का रिकार्ड तोड़ सकते हैं। क्रिकेट में हर रिकॉर्ड टूटने को बनता है। क्रिकेट के भगवान भी इससे नहीं बच सकते। किसने सोचा था कि 300 गेंदों की पारी कोई एक बल्लेबाज 200 रन बना सकेगा। पर उस सोच को पूरी तरह रौंदते हुए सचिन तेंदुलकर ने 24 फरवरी 2010 को ग्वालियर में दोहरा शतक बनाया। तब पूरी दुनिया के क्रिकेट दीवाने बोले-असंभव को संभव कर दिया। अब इस रिकॉर्ड को कोई नहीं तोड़ सकेगा। पर क्रिकेट के देवता का यह कारनामा सिर्फ 21 महीने में पुराना पड़ गया। रिकॉर्ड बुक में अब नया नाम उनसे ऊपर दर्ज हो गया। वीरेंद्र सहवाग। सचिन अब नंबर दो पर आ गए। इसके मायने यह नहीं है कि अब सचिन महान खिलाड़ी या भगवान नहीं रहे। सचिन अब भी महान हैंं। सिर्फ उनके बनाए रनों के रिकॉर्ड को एक खिलाड़ी ने पीछे छोड़ा है सचिन को नहीं। सहवाग ने इंदौर के होलकर स्टेडियम में चौका लगाकर 200 रन पूरे किए। इस रिकॉर्ड में कई बातें समान है, जो अपने आप में रोचक है। जैसे वन-डे इतिहास के दोनों दोहरे शतक भारतीयों ने बनाए। दोनों दोहरे शतक ओपनिंग बल्लेबाजों ने बनाए। दोनों ही भारत की जमीं पर और मध्यप्रदेश के शहरों में लगे। दोनों ही डे-नाइट के मैच थे। सचिन और सहवाग दोनों ने ऐसे वक्त ये शतक लगाए जब तमाम आलोचक और सहयोगी भी कहने लगे थे कि ये चूक गए हैं, उम्र उनपर हावी है, ये अब बड़े स्कोर नहीं बना सकते। सचिन ने जब दोहरा शतक लगाया तब वे भी ऐसी ही आलोचना के शिकार थे और आज सहवाग का भी हाल यही है। दोनों ने दिखा दिया कि शून्य से शिखर पर जाने का जज्बा उनमें अब भी है। हर दिन वे नई इबारत और नए रिकॉर्ड बनाने का माद्दा रखते हैं। क्रिकेट के खेल में 33 वह उम्र है जब आपको बल्ला खूंटी पर टांग देने की सलाह दी जाती है। खिलाड़ी रन आउट होने लगते हैं। गेद से नजरें चूक जाना सामान्य बात हो जाती है। पैंतीस की उम्र तक पहुंचते-पहुंचते सिर्र्फरिकॉर्ड और पुराने दिनों की यादगार पारियां आपके पीछे होती हैं। लेकिन सहवाग यहां भी सबसे अलग नजर आते हैं वे कुछ भी पीछे नहीं छोडऩा चाहते। उपलब्धियों के साथ दौड़ लगाते हुए वे उम्र से होड़ लेते नजर आते हैं। उनके बारे में सोचते हुए एक ही शब्द उभरता है-अद्भुत। जिस सहजता से वे बल्ले को घुमाते हैं और जिस ढंग से उन्होंने अपने कैरियर को गढ़ा है वह चौंकाने वाला है। क्रिकेट के तमाम स्टाइलिश बल्लेबाज उन्हें नकार देते हैं, क्रिकेट बुक के हिसाब से उनकी बल्लेबाजी एकदम उलट है। वे अपने अंदाज में खेलते हैं, न उन्हें कोई स्टाइल की परवाह है, न स्टांस की न कोई खास तरीके की उनका तो एक ही अंदाज है गेंदबाज की धुलाई। गेंद बाउंड्री पार करे, रन बने, टीम जीते। वो रन कैसे बने, कौन सा शॉट खेला इस सबका हिसाब किताब वीरू नहीं रखते। उनके शॉट अपने हैं और एकदम नए हैं। आप क्रिकेट की किताब में ढूंढते रहिए उस शॉट का नाम। सिर्फ सिर खुजाते रहेंगे वो कहीं नहीं मिलेगा क्योंकि वो वीरू का अपना शॉट, अपना स्टाइल है। सहवाग का रिकॉर्ड और इतने लंबे समय तक टीम में टिके रहना इसलिए भी महत्व रखता है कि उन्होंने देश के टॉप बल्लेबाजों के दौर में अपनी जगह बनाई है। सौरव-सचिन की ओपनिंग जोड़ी के दौर में किसी तीसरे खिलाड़ी का ओपनिंग में जगह बना पाना असंभव था। उस दौर में भी सहवाग जमे रहे और लगातार आगे बढ़े। कई दौर ऐसे भी आए जब उनके फुटवर्क, हेड मूवमेंट पर सवाल उठे। कहा गया कि दुनिया के सारे गेंदबाज जान गए हैं कि सहवाग को एक ही स्टाइल में खेलना आता है और अब वे कभी उबर नहीं पाएंगे। उनका दौर खत्म हो गया। ये दोहरा शतक तमाम आलोचकों को बाउंड्री के बाहर का रास्ता दिखाता है। सहवाग एक बार मैदान पकड़ लेते हैं तो फिर आसानी से मैदान नहीं छोड़ते। गेंदबाज उनके आगे दम तोड़ देते हैं, वे शतक के करीब जाकर भी अपना स्वाभाविक खेल खेलते हैं। कभी कोई प्रेशर उनके ऊपर नहीं दिखता। मैच बड़ा हो या छोटा रन 4 हो या 99 उनके खेलने के अंदाज में कोई फर्क नहीं पड़ता। भारतीय क्रिकेट के दो ही जय और वीरू हैं सचिन और सहवाग। दोनों ने हमेशा बल्लेबाजी से मैदान में शोले बरसाए हंै। जय जयकार हासिल की है। जब भी दोहरे शतक की बात आएगी जय-वीरू दोनों का नाम साथ ही आएगा।
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