पिछले कुछ महीनों से भगवान राम एक बार िफर मंदिरों से बाहर निकल आए हैं । वे चारों तरफ विराजित हैं । सिनेमा घर कारोबार राजनीति बयानबाजी टेलिविजन यहां तक की देश की सीमाऒं से निकलकर लंका तक वे दर्शन दे रहे हैं । हालांकि भगवान राम तो हर हिन्दू के मन में बसे हैं । पर पिछले २० बरसों में मन के अलावा राम नाम राजनीति और सांपदायिकता की पहचान बने । सत्ता हासिल करने और सत्ता से बाहर होने का ठीकरा भी भगवान के नाम फूटा । ९० के दशक में एकाएक राम नाम की लूट मची । रथयाञा नारों गली मोहल्लों की दीवारों से लेकर संसद तक बस एक ही नाम सुनाई दे रहा था राम । नारे सुनाई दे रहे थे जो राम का नहीं वो किसी काम का नहीं । सौगंध राम की खाते हैं मंदिर वहीं बनाएंगे जैसे सैकडों नारे और मंदिर बनाने का जुनून लिए लाखों लोग सडकों पर उतर गए । इस पूरी रामनामी लडाई में जनता के हाथ कुछ नहीं लगा न मंदिर बना न मिली मन को शांति देश के कई शहर जरुर अशांत हुए और सत्ता मिलते ही लीडर अपने नारों को भूल गए सौगंध को स्वाहा कर दिया और जनता के मुंह सब दो शब्द निकले- हे राम ।
पूरे बीस साल बाद राम िफर अवतरित हुए हैं । पर इन बीस सालों में उदारीकरण ने देश में बहुत कुछ बदला तो राम नाम के अस्ञ का उपयोग भी बदला ञेतायुग में राम वनवास और मर्यादा के लिए जाने गए । ५० के दशक में राम गांधीजी के हे राम के रुप मै । ८० के दशक में रामानंद सागर की रामायणा । ९० के दशक में सत्ता मंदिर और झूठे वादों के गवाह बने । अब २००७ में राम एक नए अवतार हैं । इस बार न कोई वादा न कोई सौगंध सीधे-सीधे धंधे और मुनाफे की बात । कैसे----। देखें सबसे पहले रामभक्त हनुमान पर एनीमेशन मूवी बनी । अच्छी चली तो रिर्टन आफ हनुमान अब बारी पूरी रामायण की । एनडीटीवी इमेजिन ने पूरी रामायण पर एक सीरियल से अपने चैनल को खडा किया करोडो रुपए इसके प़सार पर खर्च किया । इतना रुपया तो अयोध्या आंदोलन पर भी खर्च नहीं हुआ होगा । इसके बाद रामसेतु के मुद़दे को भुनाने की बारी लंका सरकार ने उठाई । लंका सरकार ने कहा हां - हमें पुख्ता सबूत मिल गए हैं कि राम लंका आए थे और सीताजी वाटिका में थी । लंका सरकार ने सोचा होगा जिस राम मंदिर के नाम पर करोडों लोग इकट्ठा हो जाते हैं सरकारें बन जाती है । यदि उस राम के लंका आने की बात कही जाए तो एक अरब के देश से लाखों लोग दर्शन के नाम पर लंका आ जाएंगे । इससे लंका के पर्यटन उद्योग के दिन बदल जाएंगे । आपके पास यदि कुछ रामनामी पुडिया है तो फौरन निकालिए जिंदगी बदल जाएगी । उनकी जिंदगी आपके सामने है जिन्होनें राम के नाम पर हंगामा किया और बहुत कुछ बन गए। ये भजन बिल्कुल सही है-रामजी करेंगे बेडा पार ।
जिद कुछ कर दिखाने की
जिद कुछ कर दिखाने की
Tuesday, January 22, 2008
Wednesday, January 16, 2008
विजय माल्या के बैलून से गट्टू के सैलून तक
इस साल हिंदी पत्रकारिता में बडा बदलाव आने वाला है। सेंसेक्स की तरह हिंदी मीडिया भी उछाल पर है। २००७ में भी दैनिक जागरण अमर उजाला राजस्थान पत्रिका दैनिक भास्कर ने नए काम किए। सभी अखबारों ने अपने मूल अखबार के अलावा कुछ नए पुलआउट टेबलायड या यूथ को टारगेट करते हुए नए दैनिक शुरु किए। पत्रिका ने डेली न्यूज तो जागरण ने आई नेक्सट और अमर उजाला ने कॉम्पेक्ट पबि्लश किया।
यह साल बिजनेस अखबारॊं के नाम रहेगा। इकानामिक टाइम्स बिजनेस स्टेंडर्ड और जागरण भी सीएनबीसी के साथ मिलकर हिंदी में बिजनेस अखबार ला रहे हैं। यह शुभ संकेत है। पत्रकारों आम पाठक और हिंदी भाषी जनता के लिए। इंगि्लश पत्रकारों की बिरादरी में अब हिंदी की अनदेखी नहीं की जा सकेगी। जब बडे समूह हिंदी में पैसा लगा रहे हैं इसका मतलब हिंदी मीडिया में अभी धंधे की बडी गुंजाइश है। कुछ समय पहले एक बडे चैनल के एडिटर इन चीफ ने मंच से कहा था कि हिंदी मीडिया का कोई भविष्य नहीं है। वहां बेहद घटिया खबरें रहती है। जबकि ये साहब खुद अपने समूह का एक हिंदी चैनल भी चला रहे हैं एक बडे हिंदी अखबार के भी चीफ बने हुए है।
खैर छोडिए बिजनेस के ये तीन बडे हिंदी अखबार बाजार की इकानामी और हिंदी की साख दोनों को जान जाएंगे। ऎसा नहीं है कि देश में पहली बार हिंदी में कोई बिजनेस अखबार आ रहा है । इससे पहले भी अमर उजाला कारोबार और नइदुनिया के भावताव ने कोशिश की। पर ये दोनो अखबार ऐसे समय निकाले गए जब आम हिंदी पाठक उदारीकरण को तबाही से जोडकर देखा रहा था। उसके लिए नए तरह के कारोबार विदेशी कंपिनयां एक दानव थी जो सब पैसा खा जाएगी।
निसंदेह दोनो अखबार समूह नई सोच के लिए जाने जाते हैं बिजनेस अखबार भी इसी सोच का एक अंग था। याद कीजिए वेबदुनिया का हिंदी पोर्टल जब शुरु हुआ हिंदी के धुरंधरों ने उसे नकार दिया। आज उसकी हैसियत देखिए भावताव और काराबार जितनी तेजी से समेटे गए वो निशिचत गलत रहा। कुछ दिन और चलते तो आज माहौल कुछ अलग दिखता आज आम आदमी शेयर बाजार की तेजी मंदी समझ रहा है देख रहा है पैसा लगा रहा है इस बदलाव के पीछे बडा हाथ सीएनबीसी आवाज चैनल का भी है । मैं जिस सेलून में जाता हूं वहां का मालिक मामूली पढा लिखा आदमी है । पर दुकान पर लोगों के चेहरे चमकाते चमकाते आवाज चैनल पर बाजार के उतार चढाव समझता गया ऒर पिछले एक साल में वह अपनी दुनिया चमका चुका है । दुकान चमकी गाडी पैसा ऒर रोज वह बडे दांव लगा रहा है।
आम आदमी की यह बदलती दुनिया में कई सेलून और छोटे दुकानदार बडे कहे जाने वाले शेयर के कारोबार की बारीकी समझ रहे हैं। हिंदी बिजनेस अखबारों का आना जानकारी बढाने के साथ साथ धोखे से भी बचाएगा अभी कई पढे लिखे लोगों से भी धंधेबाज धोखा कर रहे हैं । यह डीमेट एकाउंट की फीस से लेकर शेयर दलाली तक में है । हिंदी अखबार अपने मार्केट के साथा देश की इकानामी में भी बडा बदलाव लाएंगे । वे अपने लाभ के साथ साथ आम आदमी यानी गट्टू को भी बडा कारोबारी बनाएंगे।
अब तक गट़टू ने सिर्फ घर और दुकान की बाहरी दीवार पर ही कुंकुम से शुभ लाभ लिखा और देखा। अब यह सब उसके घर की बाहरी दीवारों पूजाघर ऒर दुकान के पटिए से निकालकर उसकी जेब पर भी लाभ का शुभ गणित बैठाएंगे। कई गट्टू इंतजार में हैं मौका तो दो। वे भी बैलून में उडेंगे बस देखते रहिए।
यह साल बिजनेस अखबारॊं के नाम रहेगा। इकानामिक टाइम्स बिजनेस स्टेंडर्ड और जागरण भी सीएनबीसी के साथ मिलकर हिंदी में बिजनेस अखबार ला रहे हैं। यह शुभ संकेत है। पत्रकारों आम पाठक और हिंदी भाषी जनता के लिए। इंगि्लश पत्रकारों की बिरादरी में अब हिंदी की अनदेखी नहीं की जा सकेगी। जब बडे समूह हिंदी में पैसा लगा रहे हैं इसका मतलब हिंदी मीडिया में अभी धंधे की बडी गुंजाइश है। कुछ समय पहले एक बडे चैनल के एडिटर इन चीफ ने मंच से कहा था कि हिंदी मीडिया का कोई भविष्य नहीं है। वहां बेहद घटिया खबरें रहती है। जबकि ये साहब खुद अपने समूह का एक हिंदी चैनल भी चला रहे हैं एक बडे हिंदी अखबार के भी चीफ बने हुए है।
खैर छोडिए बिजनेस के ये तीन बडे हिंदी अखबार बाजार की इकानामी और हिंदी की साख दोनों को जान जाएंगे। ऎसा नहीं है कि देश में पहली बार हिंदी में कोई बिजनेस अखबार आ रहा है । इससे पहले भी अमर उजाला कारोबार और नइदुनिया के भावताव ने कोशिश की। पर ये दोनो अखबार ऐसे समय निकाले गए जब आम हिंदी पाठक उदारीकरण को तबाही से जोडकर देखा रहा था। उसके लिए नए तरह के कारोबार विदेशी कंपिनयां एक दानव थी जो सब पैसा खा जाएगी।
निसंदेह दोनो अखबार समूह नई सोच के लिए जाने जाते हैं बिजनेस अखबार भी इसी सोच का एक अंग था। याद कीजिए वेबदुनिया का हिंदी पोर्टल जब शुरु हुआ हिंदी के धुरंधरों ने उसे नकार दिया। आज उसकी हैसियत देखिए भावताव और काराबार जितनी तेजी से समेटे गए वो निशिचत गलत रहा। कुछ दिन और चलते तो आज माहौल कुछ अलग दिखता आज आम आदमी शेयर बाजार की तेजी मंदी समझ रहा है देख रहा है पैसा लगा रहा है इस बदलाव के पीछे बडा हाथ सीएनबीसी आवाज चैनल का भी है । मैं जिस सेलून में जाता हूं वहां का मालिक मामूली पढा लिखा आदमी है । पर दुकान पर लोगों के चेहरे चमकाते चमकाते आवाज चैनल पर बाजार के उतार चढाव समझता गया ऒर पिछले एक साल में वह अपनी दुनिया चमका चुका है । दुकान चमकी गाडी पैसा ऒर रोज वह बडे दांव लगा रहा है।
आम आदमी की यह बदलती दुनिया में कई सेलून और छोटे दुकानदार बडे कहे जाने वाले शेयर के कारोबार की बारीकी समझ रहे हैं। हिंदी बिजनेस अखबारों का आना जानकारी बढाने के साथ साथ धोखे से भी बचाएगा अभी कई पढे लिखे लोगों से भी धंधेबाज धोखा कर रहे हैं । यह डीमेट एकाउंट की फीस से लेकर शेयर दलाली तक में है । हिंदी अखबार अपने मार्केट के साथा देश की इकानामी में भी बडा बदलाव लाएंगे । वे अपने लाभ के साथ साथ आम आदमी यानी गट्टू को भी बडा कारोबारी बनाएंगे।
अब तक गट़टू ने सिर्फ घर और दुकान की बाहरी दीवार पर ही कुंकुम से शुभ लाभ लिखा और देखा। अब यह सब उसके घर की बाहरी दीवारों पूजाघर ऒर दुकान के पटिए से निकालकर उसकी जेब पर भी लाभ का शुभ गणित बैठाएंगे। कई गट्टू इंतजार में हैं मौका तो दो। वे भी बैलून में उडेंगे बस देखते रहिए।
Thursday, January 10, 2008
धड़म-धड़म धड़ैया रे
शनिवार की रात जिस भी क्रिकेटप्रेमी ने मैच नहीं देखा उसने बहुत कुछ खो दिया। कई सालों बाद पूरी इंडियन टीम जोश में दिखी। ऐसा जोश इससे पहले लार्डस के मैदान में देखा था जब गांगुली ने शर्ट उतार फेकी थी। कल जोश में आग भी थी। अरे आग नहीं शोले थे क्योंकि आग अब ठंडी पड़ चुकी है(रामगोपाल वर्मा वाली)। लंबे समय बाद खिलाड़ियों में जीत की भूख सबको धो डालने का जज्बा अौर हमारे नामी खिलाड़ियों (सचिन अौर सौरव) को यह बताने का जुनून भी साफ दिख रहा था कि आने वाला कल इसी फायर ब्रिग्रेड का है।
फिल्म अोम्कारा का गाना धड़म-धड़म धड़ैया रे सबसे बड़े लड़ैया रे शायद इसी टीम के लिए लिखा गया था। पिछले तीन साल से क्रिकेट बिरादरी हम पर हंस रही थी। हमें बिना जोश अौर किलिंग स्पिरिट वाली बुजुर्ग की टीम कहा गया। पहले दक्षिण अफ्रीका फिर आस्ट्रेलिया को पटककर हमारे युवाअों ने बता दिया कि हम धुरंधरों को पटकने में माहिर हैं। पहले जब विरोधी टीम के विकेट गिरते थे तो द्रविड़ अपनी जगह पर खड़े-खड़े हाथ हिलाते थे। सचिन कड़ा चढ़ाते थे अौर सौरव नाखून चबाते दिखते थे। मानों कह रहे हों कहां विकेट ले लिया। शनिवार को ये तीनों ग्रेट प्लेयर टीम में नहीं थे पर टीम पूरी तरह से ग्रेट इंडियन दिखी। ये साफ हो गया कि ग्रेट खिलाड़ी के मैदान में खड़े रहने से मैच नहीं जीते जाते। मैच जीते जाते हैं युवराज जैसा जोश धोनी जैसी चपलता रुद्रप्रताप के रौद्र पठान की पठानी अौर भज्जी के भांगड़ के जुनून श्रीसंथ ने जब विकेट लिया तो वो कैसे तूफान की तरह लहरा रहे थे। युवराज ने मुट्ठी लहराई अौर इतने उछले मानो कंगारुअों की छाती पर चढ़कर उन्हें मुट्ठियों से पीटने का इरादा हो।
जिन खिलाड़ियों को ट्वेंटी-२० में केवल टाइम पास के लिए भेजा गया था उन्होंने सारे बड़े खिलाड़ियों को टाइम आउट कर दिया। संभव है कि आने वाले समय में यही टीम स्थायी हो जाए। आस्ट्रेलिया से इन युवाअों की जीत ने इंडिया में कप्तानी अौर सम्मान के लिए लड़ रहे बड़े खिलाड़ियों की भी नींद उड़ा दी है। उन्हे अपने घर के सोफे पर वही मैदानी जुमला याद आ रहा होगा- ये क्यों जीत गए या कह रहे होंगे- ये तो गली क्रिकेट है। यहां चल गए बड़े मैचों में कुछ नहीं कर पाएंगे। एक बात समझ लीजिए मैच २० अोवर का हो या ५० का इससे फर्क नहीं पड़ता मैदान में खिलाड़ी की आंखें अौर उसके तेवर बता देते हैं कि वो कितना शानदार खिलाड़ी है। अोवर अौर समय भले ही कम हो गया हो पर जीत की भूख बनी रहनी चाहिए। फटाफट क्रिकेट में जो धड़म-धड़म बेटिंग करे अौर अंत तक लड़े वही बनता है विजेता। इस पैमाने पर यह इंडियन टीम है सबसे बड़ी लड़ैया उम्मीद है कि पाकिस्तान को यह भी टीम ऐसे ही चबा डालेगी।
फिल्म अोम्कारा का गाना धड़म-धड़म धड़ैया रे सबसे बड़े लड़ैया रे शायद इसी टीम के लिए लिखा गया था। पिछले तीन साल से क्रिकेट बिरादरी हम पर हंस रही थी। हमें बिना जोश अौर किलिंग स्पिरिट वाली बुजुर्ग की टीम कहा गया। पहले दक्षिण अफ्रीका फिर आस्ट्रेलिया को पटककर हमारे युवाअों ने बता दिया कि हम धुरंधरों को पटकने में माहिर हैं। पहले जब विरोधी टीम के विकेट गिरते थे तो द्रविड़ अपनी जगह पर खड़े-खड़े हाथ हिलाते थे। सचिन कड़ा चढ़ाते थे अौर सौरव नाखून चबाते दिखते थे। मानों कह रहे हों कहां विकेट ले लिया। शनिवार को ये तीनों ग्रेट प्लेयर टीम में नहीं थे पर टीम पूरी तरह से ग्रेट इंडियन दिखी। ये साफ हो गया कि ग्रेट खिलाड़ी के मैदान में खड़े रहने से मैच नहीं जीते जाते। मैच जीते जाते हैं युवराज जैसा जोश धोनी जैसी चपलता रुद्रप्रताप के रौद्र पठान की पठानी अौर भज्जी के भांगड़ के जुनून श्रीसंथ ने जब विकेट लिया तो वो कैसे तूफान की तरह लहरा रहे थे। युवराज ने मुट्ठी लहराई अौर इतने उछले मानो कंगारुअों की छाती पर चढ़कर उन्हें मुट्ठियों से पीटने का इरादा हो।
जिन खिलाड़ियों को ट्वेंटी-२० में केवल टाइम पास के लिए भेजा गया था उन्होंने सारे बड़े खिलाड़ियों को टाइम आउट कर दिया। संभव है कि आने वाले समय में यही टीम स्थायी हो जाए। आस्ट्रेलिया से इन युवाअों की जीत ने इंडिया में कप्तानी अौर सम्मान के लिए लड़ रहे बड़े खिलाड़ियों की भी नींद उड़ा दी है। उन्हे अपने घर के सोफे पर वही मैदानी जुमला याद आ रहा होगा- ये क्यों जीत गए या कह रहे होंगे- ये तो गली क्रिकेट है। यहां चल गए बड़े मैचों में कुछ नहीं कर पाएंगे। एक बात समझ लीजिए मैच २० अोवर का हो या ५० का इससे फर्क नहीं पड़ता मैदान में खिलाड़ी की आंखें अौर उसके तेवर बता देते हैं कि वो कितना शानदार खिलाड़ी है। अोवर अौर समय भले ही कम हो गया हो पर जीत की भूख बनी रहनी चाहिए। फटाफट क्रिकेट में जो धड़म-धड़म बेटिंग करे अौर अंत तक लड़े वही बनता है विजेता। इस पैमाने पर यह इंडियन टीम है सबसे बड़ी लड़ैया उम्मीद है कि पाकिस्तान को यह भी टीम ऐसे ही चबा डालेगी।
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