जिद कुछ कर दिखाने की

जिद कुछ कर दिखाने की

Saturday, December 25, 2010

प्याज,इनकार,इकरार


प्याज,इनकार,इकरार

देश में तीन क बेहद चर्चा में हैं। कीमत, कलमाडी, क्रिकेट। खास यह है कि तीनों की चर्चा का कारण एक ही है। हैसियत से ज्यादा दाम हासिल करना। प्याज किसान के घर से तीन रुपए में चला और हमारे किचन तक आते-आते अस्सी रुपए तक पहुंच गया। क्रिसमस का मौका है, आम गृहिणी प्याज की कीमत से वैसे ही गुस्से में लाल थी कि अचानक सेंटा के लाल रंग को देखकर टमाटर भी इतरा गया। उसने भी छलांग लगाई और कीमत के पेड़ पर जा बैठा। इस समय आम आदमी कीमत बढऩे से परेशान है। पेट्रोल, सब्जी, दाल और न जाने क्या-क्या कितना माथा खपाए। किचन से बचाए तो पेट्रोल में लूट जाए। कितनी चीजे छोड़ दें। दूसरे क पर सवार है सुरेश कलमाड़ी। उनके घर पर भी सीबीआई ने छापा मारा। आरोप है कि खूब पैसा बनाया। पर कॉमनवेल्थ के खिलाड़ी कलमाड़ी ने सीबीआई के गेट के बाहर होते ही कहा-सब झूठ। मैंने पाई-पाई का हिसाब दे दिया है, मेरा इस घोटाले से कोई लेना देना नहीं है। सब जानते हैं मेरा काम सिर्फ पांच फीसदी था। इसे कहते हैं सच्चा इनकार। तीसरे क के खिलाड़ी है ललित मोदी। जो आईपीएल के घपले के बाद देश छोड़कर लंदन में जा बैठे हैं। भारत में किसी भी घपले से इनकार करने वाले मोदी लंदन में एकदम संत बन गए। एक अखबार को दिए इंटरव्यू में उन्होंने स्वीकार किया कि आईपीएल में मेरे परिवार ने पैसा कमाया। इसे कहते हैं सुपर इकरार। केंद्र सरकार इस बात से परेशान है कि अपनी औकात से कई गुना ज्यादा पैसा बना चुके मंत्री, अफसरों और आम आदमी की जरूरत की चीजों की कीमत कैसे नियंत्रित की जाए। झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री मधु कोड़ा, केंद्रीय मंत्री रहे ए राजा, सुरेश कलमाड़ी, नीरा राडिया, ललित मोदी जैसे न जाने कितने नाम। अब जरूरत है प्रधानमंत्री पूरे तंत्र को सुधारें। आम आदमी की जरूरत की चीजों से लेकर पूरे मंत्रिमंडल और नौकरशाही को काबू में रखने का कोई साफ्टवेयर तैयार करें ताकि कोई भी हद पार न कर सके। परमाणुु समझौते, संयुक्त राष्टï्र में स्थायी सदस्यता। अमेरिका और चीन के लिए नौकरी और बाजार खोलना। फ्रांस के राष्टï्रपति का भारत आकर देश के गुणगाना और रूस के सुप्रीमो का भारत को सुपरपावर बताना। ये सब तमगे तभी सुहाते हैं, जब आम आदमी खुश रहे। देश का हर तबका कामयाबी हासिल करे, वरना ऐसे ही प्याज, इनकार, इकरार के ड्रामें आंसू निकलवाते रहेंगे।

Tuesday, November 30, 2010

ग्रामीण भारत के ताकतवर सात सितारे


ग्रामीण भारत के ताकतवर सात सितारे

इस महीने जब पूरा देश दीपावली की खरीदारी, पटाखों के बारूद, केंद्रीय मंत्री ए राजा के घोटाले और सोने-चांदी की बढ़ती कीमत, शेयर मार्केट के उतार चढ़ाव, भारतीय क्रिकेट टीम की जीत हार का गणित लगाने में माथा खपा रहा था, दुनिया के किसी हिस्से में नए भारत की कहानी लिखी जा रही थी। दुनिया भर के अमीरों की सूची के लिए प्रख्यात फोब्र्स पत्रिका में एक ग्रामीण भारत अपनी जगह बना रहा था। शाइनिंग इंडिया की चमक और अमेरिकी राष्टï्रपति ओबामा की भारत यात्रा और देश की प्रंशसा से गदगद मीडिया अमेरिका के गुण गा रहा था। ठीक उसी वक्त अमेरिका की चमकीली ईमारत में तमाम विदेशी एक्सपर्ट भारत के आम आदमी के अविष्कारों की इबारत को रंगीन पन्नों पर लिख रहे थे। देव दीपावली के दो दिन पहले फोब्र्स ने ग्रामीण भारत के सात शक्तिशाली लोगों की सूची जारी की। ये वे लोग हैं जिन्होंने किताबी ज्ञान और डिग्री के बजाए अपने अनुभव, आम आदमी की तकलीफों को समझा और उन तकलीफों को दूर करने में जुट गए। इन्होंने अपनी स्मृतियों को आधार बनाया और भारतीय पुराणों के इस वाक्य को सार्थक कर दिया कि - स्मृति को अविष्कार में बदलने वाले ही देवता कहलाते हैं।
ये सातों भारतीय आधुनिक भारत के सप्तऋषि हैं । ऋषि शहरी जीवन से दूर बिना लाभ हानि की चिंता किए समाज में ज्ञान के विस्तार के लिए समाधि लगाए रहते थे। ठीक वैसे ही इनका काम हैं। सुदूर गांवों में अपने ें कर्म से इन अविष्कारकों ने भारतीय समाज को अपने यंत्रों का वरदान दिया। खास बात यह है कि इस सूची में शामिल तीन के नाम मनसुखभाई हैं। मनसुखभाई जगनी, मनसुखभाई पटेल, मनसुखभाई प्रजापति, अंशू गुप्ता, रामाजी खोबरागढ़े, मदनलाल कुमावत, चिंताकिंडी मल्लेशाम ये वो नाम हैं जिन्होंने काम से अपने नाम को सार्थक किया। इन्होंने ऐसे सवालों के जवाब ढूंढ निकाले हैं जो हमारे लिए अक्सर मजाक होते हैं। जैसे हममें से ज्यादातर लोग मटके को गरीबों का फ्रीज कहते रहे हैं। बस इसी शब्द को सिद्घ करते हुए बिना बिजली का फ्रिज सामने आया तो पत्नी को तवे पर रोटी सेंकते हुए होने वाली परेशानी से फ्राइंग पेन। गांवों में अक्सर अमीर लोग गरीबों को ताना मारा करते हैं। टै्रेक्टर नहीं है तो मोटरसाइकिल से खेत जोत लो। बस इसी से प्रेरणा ली और बना दिया मोटरसाइकिल वाला ट्रेैक्टर।

आइए, सिलसिलेवार इसे देखें। राजकोट गुजरात के मनसुखभाई प्रजापति पारिवारिक पेशे से कुम्हार हैं। पीढिय़ों से मिट्टïी के बर्तन परिवार बनाता रहा है। पर मिट्टïी को सोना करने की कहावत चरितार्थ की मनसुखभाई ने। उन्होंने बिना बिजली का मिट्टïी का फ्रीज बनाया। 2001 में गुजरात में आए भूंकप में हजारों लोगों के मटके तक नष्टï हो गए थे। लोगों को उन्होंने कहते सुना इस भूकंप ने गरीबों का फ्रीज तक छीन लिया। बस यहीं से प्रजापति ने काम शुरू किया और मिट्टïीकुल नाम से बिना बिजली का फ्रीज तैयार कर दिया। 2001 से 2004 तक वे इस पर लगातार प्रयोग करते रहे। 2005 में उन्होंने अपनी पत्नी को नान स्टिक तवे के लिए परेशान होते देखा। यह महंगा था इसलिए वे खरीद नहीं पा रही थी। इसे देखते हुए प्रजापति ने मिट्टïी के पुराने तवे पर कुछ प्रयोग किए और नान स्टिक तवा तैयार कर दिया। वो भी मात्र सौ रूपए में। अमेरिकी राष्टï्रपति ओबामा ने अपनी यात्रा के दौरान संसद के सेट्रंल हाल में अपने भाषण में कहा भी था कि आप कौन हैं और कहां से आते हैं, इससे फर्क नहीं पड़ता। सभी इश्वर द्वारा प्रदत्त क्षमता से अपनी पहचान बना सकते हैं। इसका सबसे बड़ा उदाहरण डॉ भीमराव अंबेडकर हैं जिन्होंने दलित होते हुए भी भारत का संविधान लिखा। प्रजापति ने भी एक बार फिर इसे सिद्घ किया है कि क्षमतावान को कोई रोक नहीं सकता। जरूरत है उसे पहचानने की।
मनसुखभाई पटेल भी पीछे नहीं रहे। कपास के पूरे बंद और अधखुले फूल में से कपास निकालना बेहद समय लेने वाला और थका देने वाला काम है। दसवीं तक पढ़े पटेल ने इसे दूर करने के लिए कपास की छंटाई मशीन तैयार की। वे देश के ऐसे पहले ग्रामीण अविष्कारक बने जिन्हें अमेरिकी पेटेंट भी हासिल हुआ। इसके अलावा उन्होंने कपास की उन्नत तकनीक भी विक सित की। इससे किसानों का मुनाफा बढ़ा। कपास ने हमेशा ही भारत को सम्मान दिलाया है जब सिंकदर की फौज यहां आई तो सिंधु घाटी की सभ्यता और खेतों में कपास देखकर उन्होंने दातों तले उंगली दबा ली थी। वे आश्चर्य चकित थे कि जो ऊन वो भेड़ो से हासिल करते हैं हिंदुस्तानियों ने उसे खेतों में उगा रखा है।

खेत जोतने की बात आती है तो दो ही दृश्य उभरते हैं। बैल जोड़ी लेकर पसीना बहाता किसान या ट्रैक्टर पर बैठा समृद्घ काश्तकार। इस दृश्य को फे्रम से हटाने का काम किया है गुजरात के ही मनसुखभाई जगनी ने। जगनी ने मोटरसाइकिल खेत जोतने का यंत्र तैयार किया है। ये बिल्कुल ट्रैक्टर की तरह ही काम करता है। ये देा लीटर ईंधन में आधे घंटे में करीब एक एकड़ जमीन जोत सकता है। जब विदेशों में इसे दिखाया गया तो करीब 3़18 डॉलर के इस ट्रैक्टर को सबने सराहा। इसे 325 सीसी की मोटरसाइकिल पर बनाया गया है और पिछले हिस्से में दो पहिए लगाए गए ताकि ट्रैक्टर जैसा काम कर सके। चार साल के लगातार परीक्षण के बाद तैयार इस अविष्कार को नाम दिया गया है बुलेट हल।

अपनी अंगुलियों को दर्द देकर लोगों को सुंदर कपड़ा देने वाले बुनकरों की जिंदगी को खूबसूरत बना रहे हैं आंध्र पद्रश के चिंताकिंडी मल्लेशाम। उनके व्दारा तैयार लक्ष्मी आसू मशीन ने बुनकरों को लूम की खट- -खट से मुक्ति दिलाई है। एक साड़ी तैयार करने में बुनकरों को हजारों बार हाथ घुमाना पड़ता था। नई मशीन में उन्हें सिर्फ धागे एडजस्ट करना होते हैं। पहले बुनकर पूरा दिन काम करके सिर्फ एक साड़ी का मटेरियल तैयार कर पाते थे, अब वे एक दिन में 6 साड़ी तैयार कर सकते हैं। पर दुर्भाग्य है कि देश में बुनकरो की हालत इतनी खराब है कि वे इस मशीन को भी नहीं खरीद पा रहे हैं। सरकारी दावे के अलावा फिल्म स्टार आमिर खान और करीना कपूर भी थ्री इडियट के प्रमोशन के दौरान बुनकरों के घर पहुंचे थे और उनके लिए कुछ करने का वादा किया था। आमिर ने करीना को एक साड़ी भी गिफ्ट की थी। अभी भी बुनकरों की पहुंच से यह मशीन दूर है।
एक तरफ देश में कपड़ा बुनने वाले दुदर्शा के शिकार है दूसरी तरफ लाखों ऐसे लोग हैं जिन्हें पहनने को कपडे तक नसीब नहीं है। गरीब बच्चे सड़कों पर ठंड में रात काटते हैं। ऐसी परेशानियों को महसूस करते हुए समाजसेवी अंशू गुप्ता ने गूंज संस्था के जरिए गरीबों को कपडे उपलब्ध करवाने का काम शुरू किया। फोब्र्स की सूची में वे भी शामिल हैं। अंशू अमीरों के पुराने कपड़ो को इक_ïा कर गरीबों में बंटवाने का जिम्मा संभाल रहे हंै। उनकी संस्था प्रतिमाह करीब 30 टन कपड़े इक_ïा कर बीस राज्यों में बंटवाते हैं। भारतीय समाज की इस पीड़ा को देखते हुए ही गांधीजी ने केवल एक कपड़ा पहनने का संकल्प लिया था।

राजस्थान के सीकर के मदनलाल कुमावत ने भी ज्ञान के लिए डिग्री जरूरी नहीं इसे सिद्घ किया है। चौथी कक्षा तक पडे कुमावत ने एक ऐसा थ्रेशर विकसित किया है जो कई फसलों के लिए काम आ सकता है। इसे पेटेंट केलिए आवेदन दिया हुआ है।

खेती, कपड़े के उपकरण बने हैं तो भला खाने में पीछे कैसे रहा जा सकता है। महाराष्टï्र के रामाजी खोबरागढ़े ने चावल की एक नई प्रजाति विकसित की है। बिना किसी वैज्ञानिक सहायता के रामाजी ने इस पर काम किया। चावल की इस किस्म को एचएमटी नाम दिया गया है। इस बीज से करीब 80 फीसदी ज्यादा फसल मिल रही है। साथ ही इसका दाना बारीक और खुशबुदार है। देशभर के किसान इस चावल क्रांति का लाभ ले रहे हैं।


भारत गांवों का देश है और ग्रामीण ही इस देश की जान इसे एक बार फिर साबित कर रहे हैं हिंदुस्तानी। इसके और भी उदाहरण है जैसे कौन बनेगा करोडपति की इस सीजन की करोड़पति गृहिणी तसलीम राहत। तसलीम ने सिद्घ किया कि हाउस वाइफ ज्ञान में कम नहीं होती। एशियाड में इलाहबाद केआशीष कुमार, नासिक की बेटी और वाराणसी की बहू कविता राउत और रायबरेली की सुधा ने दौड़ में देश का नाम रोशन किया। भारत की इसी ताकत ने दुनिया केदादा को भी बोलने पर मजबूर किया जयहिंद।

Thursday, November 25, 2010

रात गई बात गई


ज की ताजा खबर- एक और बड़ा घोटाला। लगाओ पुराने पर ताला। हर पुराने घोटाले पर एक नया घोटाला ऐसा ही ताला ठोंक रहा है। एक तरह से हर नया घोटाला पुराने को निपटाने की चाबी बनता जा रहा है। हर नए के साथ कुछ ऐसे शब्द जुड़ जाते हैं- अब तक का सबसे बड़ा घोटाला, देश को बेच डालने का इससे बड़ा उदाहरण दूसरा नही, इतना शर्मसार तो देश पहले कभी नहीं हुआ, इस खुलासे ने देश को कलंकित कर दिया। ऐसा लगता है मानो इसके पहले देश में अब तक जो घटा वो तो कुछ था ही नहीं। असल में ताले उन घोटालों पर नहीं हमारी याददाश्त, हमारी सोच हमारे सरोकारों पर लगते हैं। कुछ घंटो, दिनों या सप्ताह भर पहले तक हम जिस मुद्दे पर घंटों घर, दफ्तर, पान की दुकानों पर बहस करते नजर आते थे। राजनीतिक दल पुतला फूंक तमाशा, धरने, रैली, भाषण सब झोंक देते थे। जनता की अदालत में ऐसा माहौल बन जाता था कि आवाज निकलने लगती थी कि ऐसे शर्मनाक व्यक्ति या घोटाले बाज को सरेआम फांसी देनी चाहिए, चौराहे पर 'सार्वजनिक अभिनंदन करनाÓ चाहिए, देशप्रेम से भरे हम मु_ïी ताने, आंखों में खून उतर आने की हद तक बहस करते हैं। फिर अचानक एक नया मामला और पुराना गुस्सा, विरोध सब हम ऐसे याददाश्त से हटा देते हैं जैसे दिमागी कंप्यूटर के डिलीट का बटन दबा दिया गया हो। शायद हम भारतीय विरासत में मिली इन पंक्तियों को भी जीवन में आत्मसात कर चुके हैं- बीती ताहि बिसार दे।
अब घोटाले के बदलते रूप और उसके बढ़ते कद, घटती शर्म को देखते हैं। अभी कुछ सप्ताह पहले तक कॉमनवेल्थ खेलों के घपले पर पूरा देश शर्मिंदगी महसूस कर रहा था। इस पर जितना बवाल हुआ उसके बाद मुख्य कर्ताधर्ता सुरेश कलमाडी खलनायक दिखाई दे रहे थे। खेल के ओपनिंग में भी उनकी जमकर हूटिंग हुई। पर वे पूरी शान से सूट-बूट डालकर जमे रहे। बार-बार कहा मैं बेदाग हूं, रहूंगा। ये आत्मविश्वास उनमें था क्योंकि वे बड़े खिलाड़ी जमे, तपे राजनेता हैं। वे आम भारतीय नहीं हैं जो दरवाजे पर हवलदार की दस्तक से ही खाना-पीना छोड़ देता है। कलमाडी ने आने वाला कल देख लिया था। वे निश्चिंत रहे होंगे कि एक घोटाला आएगा और मेरे कु-कर्म सब भूल जाएंगे। सरकार ने भी कुछ संकेत दिए उनसे दूरी बनाने के। जैसे डिनर पर नहीं बुलाया, खिलाडिय़ों के सम्मान समारोह से दूर रखा। अरे ऐसा आदमी जिसने देश का सम्मान दांव पर लगा दिया उसे क्या फर्क पड़ेगा ऐसे कार्यक्र मों के आमंत्रण न मिलने से। हर विवादित आदमी किसी अन्य विवादित का भला ही करता है। जैसे आईपीएल के गवर्नर ललित मोदी को राहत दी कलमाडी ने और कलमाडी को पछाड़ कर सामने आए नए खलनायक महाराष्टï्र के मुख्यमंत्री अशोक चव्हाण। आदर्श हाउसिंग सोसायटी घोटाला लेकर। एक वाक्य है- दुनिया में सारे रिकॉर्ड टूटने के लिए ही बनते हैं और कोई भी शिखर पर लंबे समय तक नहीं रह सकता। ऐसे में घोटाले के शिखर पुरुष भी बदलने ही है। आजकल तो होड़ लगी है। झारखंड से निपटो तो कर्नाटक का नाटक वहां से निकले तो खेलगांव और अब महाराष्टï्र। अगले कुछ महीने, सप्ताह तक अशोक चव्हाण 'आदर्श मेडलÓ लेकर घूमते रहेंगे। देश के किसी कोने में, किसी दफ्तर में या किसी सदन में कोई नया घोटालेबाज अशोक चव्हाण को रिप्लेस करने के लिए दंड पेल ही रहा होगा। इंतजार करिए जल्द सामने होगा एक नया आदर्श। ऐसा कि आप भूल जाएंगे सारी पुरानी बातें। नया दौर नई कहानी।
अब जरा और पीछे पलटकर देख लेें। उनको याद कर लें जो अपने-अपने वक्त में इस खेल के महानायक रह चुके हैं। आईपीएल के कर्ताधर्ता ललित मोदी पर एक साथ कई जांच कमेटियों ने नकेल कसने का दिखावा किया। बावजूद उसके उन्हें सेफ पैसेज दिया गया देश छोडऩे का। जब वे सात समंदर पार जाकर बैठ गए उनके खिलाफ इंटरनेशनल वारंट जारी कर दिया गया। अब ढूंढ़ते रहो। कोई आश्चर्य नहीं थोड़े दिन बाद मोदी किसी दूसरे देश में अपनी एक अलग क्रिकेट लीग चलाते नजर आएं। गुलशन कुमार हत्या के आरोपी नदीम भी लंदन में बैठे हैं। वे वहां से बाकायदा भारतीय फिल्मों में संगीत भी दे रहे हैं। पर हम उन्हें देश नहीं ला सके। आज जनता इस मामले को भूल चूकी है। असल में हर घोटाले या लापरवाही पर सजा के नाम पर सिर्फ स्थान परिवर्तन होता है। यानी लाइन अटैच। देश पर हुए सबसे बड़े आतंकी हमले को भी हमने वैसे ही भुला दिया। उस वक्त महाराष्टï्र के गृहमंत्री रहे आर आर पाटिल हटा दिए गए थे। आज वे फिर उसी महाराष्टï्र में गृहमंत्री हैं। मुख्यमंत्री पद से हटाए गए विलासराव देशमुख अब एक कदम आगे केंद्र में भारी मंत्री हैं। अशोक चव्हाण यदि राज्य से हटाए गए तो वे केंद्र में दिखेंगे। कलमाड़ी, संभव है ओलिपिंक की तैयारी में लग जाएं और ललित मोदी विश्वकप क्रिकेट टूर्नामेंट में दिख जाएं। कभी भारतीय टीम से मैच फिक्ंिसग के बाहर धकेले गए मोहम्मद अजहरुद्दीन और उनके सहयोगी आज पहले से बड़े मुकाम पर हंै। सबसे बड़ी बात इन्हें जनता ने ही फिर चुना है। अजहर सांसद बन गए तो उनके साथी क्रिकेट एक्सपर्ट और काम भी ऐसा कि रोज टीवी पर दिखते हैं पूरी शान से। संसद पर हमले के दोषी अफजल गुरु को हम फांसी नहीं दे पा रहे। हर्षद मेहता, सत्यम के संस्थापक राजू, सांसद खरीदी और हत्या में उलझे शिबू सोरेन, सदन में सवाल पूछने के बदले पैसा लेने वाले सांसद सब धीरे-धीरे फिर उसी चाल और चतुराई से सामने दिखाई दे रहे हैं। फिल्म स्टार्स को देखिए संजय दत्त, सलमान खान पर बड़े मामले चल रहे हैं। फिर भी दोनों जनता के लाडले बने हुए हैं। उन्हें फिर मौका मिल गया अकड़ कर दबंगई करने का। जिन्हें कहीं मौका नहीं मिलता उनके लिए बिगबॉस है ही।
दरअसल इस सबमें पब्लिक का भी ज्यादा दोष नहीं। कोई भी चीज लंबे समय तक टिकती ही नहीं। सत्तर के दशक में घोटाला बे्रकफास्ट की तरह था तो 80 में लंच की तरह स्वीकार्य हो गया। 90 में लंच डिनर दोनों हुआ तो 2000 के बाद यह आल इंडिया भंडारे की तरह हर कोने में आयोजित होने लगा। चीजें टिकाउ थीं, याद रहती थीं अब इतनी तेजी से बदलाव होता है कि क्या-क्या याद रखें। पहले वनस्पति घी यानी डालडा, घोटाला यानी बोफोर्स, रथयात्रा यानी आडवाणी, भाषण तो अटल बिहारी, फिल्म...शोले तो हीरो...अमिताभ बच्चन, क्रिकेटर... कपिलदेव! देश ने इनके साथ ही करीब बीस साल गुजार दिए। फिर ऐसा दौर आया , तरह तरह के वनस्पति घी, रिफाइंड तेल। हीरो हर दिन नया। घोटालों की लाइन लग गई। हर राजनेता यात्री बन बैठा। क्रिकेट में इतने मैच कि हर घंटे नया हीरो। हाल ही में आगरा के दीपक ने दस रन देकर आठ विकेट लेकर नया रिकॉर्ड बना दिया। फिल्में टिकती ही नहीं। 25 साल तक शोले नंबर वन रही फिर उसका रिकॉर्ड दिलवाले दुलहनिया ले जाएंगे ने तोड़ा। इसके बाद कोई रिकार्ड नहीं बचा, गजनी, थ्री इडियट और ताजा हिट रोबोट। अब बेचारा आदमी कितना याद रखे। कुल मिलाकर यह देश, जांच समितियां और जनता फिल्म गजनी की तरह शार्ट टर्म मेमोरी लॉस के शिकार हो गए हैं। वे उन्हीं चीजों को याद रखते हैं जो उन्हें सामने दिखाई देती है। जैसे गजनी में आमिर खान को अपनी याददाश्त बनाए रखने के लिए शरीर पर नाम, नंबर गुदवाकर रखने पड़ते थे। वह दर्पण के सामने खड़ा होकर उन्हें देखता था और फिर याददाश्त ताजा और दुश्मन का खेल खत्म। जरूरत है गजनी की तरह पूरा देश अपने पास घोटालेबाजों के नाम, नंबर और तस्वीर रखे। उन्हें रोज देखता रहे ताकि वे बच न सके और देश की सही तस्वीर बन सके, नहीं तो यही कहते रहेंगे रात गई बात गई।

बिग बेशर्मी बॉस

छोटे परदे पर इस वक्त बड़ा संस्कार (विहीन) सच्चाई का ड्रामा छाया हुआ है। रियलिटी शो और सेलिब्रिटीज की सच्चाईके नाम पर सेक्स, अश्लील संवाद से लेकर शादी, सुहागरात तक का सीधा प्रसारण हो रहा है। छोटे परदे पर बिग बॉस मेंऐसा ही ड्रामा जारी है। पिछले कुछ सालों में भारतीय टेलीविजन में रियलिटी शो के नाम पर क्रार्यक्रमों की बाढ़ आ गई है।टीआरपी बढ़ाने के चक्कर में चैनल सारी हदें तोड़ रहे हैं। वे यह भी भूल रहे हैं कि वे सीधे ड्राइंग रूम और परिवार के बीचदेखे जाते हैं। बिग बॉस में पिछले सीजन में लडृकियों ने राजू श्रीवास्तव का तौलिया खींंचकर उन्हें निर्वस्त्र कर दिया था, तो इस बार पाक से आई वीना मलिक ने अपना तौलिया खुद सरका दिया। डाली बिंद्रा ने हर शब्द में अश्लीलता का तड़का लगाया।सारा अश्मित, वीना अश्मित तो पूरे समय बॉहों में बॉहें डाले प्रेमपर्व मनाते ही नजर आए। यहां तक भी ठीक था। फिर साराके मंगेतर की एंट्री हुई। बिग बॉस के घर में ही निकाह हुआ। फिर सुहागरात का भी सीधा प्रसारण कर दिया गया। इसे देखकरपरिवार के साथ टीवी देख रहे लोग इधर-उधर झांकने लगे। इधर परिवार शर्मसार हो रहे थे, उधर सारा के पति अली मर्चंेटसीना तानकर कह रहे थे इसमें गलत क्या किया। जो किया शादी के बाद किया। मानो शादी के बाद सारी दीवारें गिराकरसब कुछ खुल्लम खुल्ला करने का लायसेंस मिल जाता हो। खबर है कि बिग बॉस के इस बदनाम घर में अपनी बिंदास अदाओ
ं और खुलेपन के लिए पहचानी जाने वाली पॉमेला एंडरसन आ रही है। ऐसे ही एक रियलिटी शो में मर्यादाओं को ऐसेतार-तार किया गया कि इसमें शामिल झांसी का एक युवक मौत का शिकार हो गया। एनडीटीवी के शो राखी का इंसाफमें इस युवक को राखी ने शो पर नामर्द कहा था। परिजनों के मुताबिक शो के बाद युवक का अपने परिवार, मोहल्ले मेंमुंह दिखाना मुश्किल हो गया था। पिछले दिनों उसकी मौत हो गई। ऐसा नहीं है कि ये दोनों घटनाएं अचानक सीधेप्रसारण में हो गई हो। दोनों ही कार्यक्रम पहले से रिकॉर्डेड होते हैं। बावजूद इसके चैनल के कर्ताधर्ता ऐसे दृश्यों और संवादों पर एडिटिंग की कैंची क्यों नहीं चलाते। वे ऐसा करने या शर्मसार होने के बजाए कई-कई दिनों तक इन दृश्यों और संवादों को प्रचार में इस्तेमाल करते रहते हैं। ऐसे कार्यक्रमों को देखने के बाद ऐसा लगने लगा है कि टीवीके लिए भी सेंसरशिप पर गंभीरता से सोचा जाना चाहिए क्योंकि इसका दायरा व्यापक है। यह घर-घर तक पहुंचता है।फिल्में तो उन्हीं लोगों तक जाती हैं जो उसे देखने जाते हैं। तकनीकी विकास और आजादी ने अपने साथ प्रतिस्पर्धा औरपरेशानी भी लाई है। एक समय टीवी से ही महाभारत, रामायण, भारत एक खोज, चाणक्यसहित कई क्वीज प्रोग्राम देश भर में लोकप्रिय होते थे। टीआरपी की होड न होने के बावजूद जो दर्शकों का सम्मानमहाभारत, रामायण को मिला वो तमाम हथकड़ों के बावजूद आजतक कोई भी कार्यक्रम नहीं छु सका। जरूरत हैछोटे परदे के बिगड़ते रूप पर बड़ी बहस की।

Wednesday, February 17, 2010

सादगी का भाजपाई ड्रामा जारी आहे

एक बड़े नेता ने कुछ साल पहले कहा था कि राजनीतिक दलों के संगठन में भी अब तीन श्रेणियां हो गई हैं। पहली
खजूरिया, दूसरी हुजूरिया और तीसरी मजूरिया। खजूरिया वे लोग हैं जो निजी लाभ हासिल करने के लिए दल में रहते हैं। इसके बाद ऐसे लोग जो सिर्फ चमचागिरी, चापलूसी और जी हुजूरी में लगे रहते हैं, हुजूरिया कहलातेे हैं। तीसरे ऐसे कार्यकर्ता होते हैं जो बिना किसी अपेक्षा के रात-दिन काम मे लगे रहते हैं वे मजूरिया कहे जाने लगे हैं। इस वक्त भारतीय जनता पार्टी में भी बड़ा वर्ग खजूरिया व मजूरिया का है। राम मन्दिर आन्दोलन के दौरान इसमें मजूरिया यानी जमीनी कार्यकर्ताओं की बड़ी ताकत थी। जब से पार्टी सत्ता में आई संगठन पीछे छूट गया और उस पर हावी हो गई खजूरिया व हुजूरिया श्रेणी। पिछले साल चुनावों में मिली हार के बाद पार्टी में फील गुड, शाइनिंग इण्डिया और हाईटेक प्रचार के आवरण से बाहर निकलकर जमीनी संगठन खड़ा करने का हल्ला है। चूंकि भाजपा का राष्ट्रीय अधिवेशन 17 फरवरी से मध्यप्रदेश के इन्दौर में शुरू हो रहा है इसलिए ये सारी बातें जरूरी है।

अधिवेशन की तैयारियां जोरों पर हैं। कहा जा रहा है कि इन्दौर की जमीन से संगठन फिर उठ खड़ा होगा। पूरी चर्चा संगठन के ढांचे व जमीनी कार्यकर्ताओं के समान पर होगी। इसी उद्देश्य से संघ ने दिल्ली से देश चलाने वाले नेताओं को दरकिनार कर नागपुर से नितिन गडकरी को भेजा। संघ का मानना है कि यह बदलाव कारगर होगा। गडकरी सादगी का मन्त्र फंूकेंगे। कथनी-करनी का भेद मिटाएंगे। संघ की विचारधारा से पूरा ताना-बाना बुनेंगे। यह अधिवेशन इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि इससे न सिर्फ गडकरी की ताजपोशी होगी बल्कि इसमें हुए निर्णय ही पार्टी का भविष्य तय करेंगे। पालमपुर में 1989 में हुए अधिवेशन के बाद भाजपा का कोई अधिवेशन ऐसा यादगार नहीं रहा। पालमपुर में ही भाजपा ने राम जन्मभूमि आन्दोलन से जुड़ने का प्रस्ताव पारित किया था। उसके बाद वह लगातार ऊंचाइयों पर पहुंची और केन्द्र की सत्ता भी हासिल की। पर इन्दौर के अधिवेशन में पूरी चर्चा इन्तजामों, उनकी भव्यता पर हो रही है। कहीं भी विचारधारा या किन मुद्दों पर चर्चा होगी, इसकी बात नहीं हो रही।
इस अधिवेशन में मुय नारा सादगी है। पूरा आयोजन होटल व फाइव स्टार संस्कृति से दूर होगा, ऐसा दावा है। संघ की तर्ज पर तंबू लगाए जा रहे हैं। सारे बड़े नेता संघ शिविरों की तरह तंबू में रहेंगे। पर सिर्फ तंबू लगा लेने से कोई संघ की तरह नहीं हो जाता, जरूरी है कि संघ की तरह पूरा आयोजन हो। इन तंबूओं के खर्चे की बड़ी चर्चा है। नज़र डालिए इस फाइव स्टार सादगी पर। सारे तंबू वॉटर प्रूफ हैं। उनमें से ज्यादातर एयरकण्डीशण्ड रहेंगे। प्रत्येक तंबू के साथ अटैच लेट-बॉथ। अस्थायी टायलेट्स का खर्च करीब एक करोड़ है। वहीं पानी की लाइन व इन्तजाम पर खर्च होंगे 12 लाख रुपये। इसमें मिनरल वॉटर का खर्च शामिल नहीं है। बिजली कनेक्शन का खर्च 16 से 20 लाख है। नेताओं के लाने-ले जाने के लिए गाçड़यों पर खर्च होंगे 20 से 25 लाख रु.। इसके अलावा खाने के इन्तजाम पर करीब 50 लाख का खर्च होने का अनुमान है। सादगी की मिसाल बनने वाली इन 1200 झोपçड़यों का किराया है करीब 20 लाख। यानी एक झोपड़ी का औसत किराया 1600 रुपये। उस पर भी नेताओं के लिए नहाने के लिए गर्म पानी का इन्तजाम करीब पांच किलोमीटर दूर सांची दुग्ध सेंटर से होगा। वहां से पानी गर्म होकर टैंकरों से अधिवेशन स्थल तक आएगा। उस पर एक और शिगूफा, अधिवेशन स्थल पर नेता साइकिल का उपयोग करेंगे ताकि पर्यावरण न बिगडे। कब तक नेता यह समझते रहेंगे कि जमीनी कार्यकर्ता व जनता को वे आसानी से धोखा दे सकते हैं। अब जमाना बदल गया है बच्चा-बच्चा जानता है कि साइकल से पर्यावरण नहीं बचेगा यदि पर्यावरण की फिक्र इतनी ही है तो एयरकण्डीशण्ड व नेताओं की सेवा में लगी सात सौ गाçड़यां से होने वाले प्रदूषण पर भी गौर करिए।

ऐसा नहीं है कि दूसरे राजनीतिक दलों के अधिवेशन में ऐसी शाहखर्ची नहीं होती। कांग्रेस के सूरजकुण्ड व पचमढ़ी अधिवेशन भी ऐसे ही रहे हैं। पर उनके प्रस्तावों पर आज जनता में या कार्यकर्ताओं में कोई बात नहीं होती। जब भी इनकी बात आती है तो हलुए, रबड़ी और दाल-बाफले जैसे व्यंजन, ठहराने के इन्तजाम ही याद किए जाते हैं। क्या भाजपा का यह अधिवेशन भी चिन्तन, विचारधारा या किसी ठोस प्रस्ताव के बजाए सिर्फ हलुआ पूरी, मालवा के व्यंजन और मेहमाननवाजी के लिए ही जाना जाएगा? इन्दौर में संघ से जुडे व संघ को जानने वाले लोगों की संया कम नहीं है। यह वही शहर है जहां संघ के बड़े-बड़े शिविरों में खाने का इन्तजाम पूरे शहर से घर-घर से रोटियां इक_ा कर होता रहा है। इसके पीछे फिजूलखर्ची रोकने के साथ-साथ आम जनता और कार्यकर्ताओं को दिल से जोड़ने का भी रहा है। यकीन मानिए, यदि भाजपा यही तरीका अपनाती तो आम कार्यकर्ता के साथ-साथ जनता भी उन्हें भोजन देने में गर्व महसूस करती। वे हर घर में पैठ बना लेते। गडकरी प्रशंसा के सही हकदार बनते और दूसरे सभी अधिवेशन के लिए मिसाल भी। कांगे्रस नेता दिग्विजय सिंह ने हाल ही में बयान भी दिया था कि ये तंबू सिर्फ दिखावा है, खाना तो फाइव स्टार से ही मंगाकर खाएंगे ये भाजपाई। भाजपा के अधिवेशन में अब तक कहीं इस बात का जिक्र नहीं आया कि प्रस्ताव कौन से होंगे। पार्टी के सामने चुनौतियां क्या हैं। कौन इन मुद्दों के लिए तैयारी कर रहा है। भाजपा जैसे दलों को संगठनात्मक ढांचे के लिए वामदलों से सीख लेनी चाहिए। उनके बड़े-बड़े अधिवेशन बड़ी सादगी से निपट जाते हैं। वे कभी खाने और ठहरने के इन्तजामों के लिए चर्चा में नहीं रहते। अधिवेशन के बहुत पहले से ही उनके प्रस्तावों, विचारधारा और भविष्य की रणनीति पर चर्चा शुरू हो जाती है। मीडिया में भी चर्चा चिन्तन की ही रहती है।

अगर आप समाजसेवा, राष्ट्रसेवा पर चलें तो खुद की सुविधाओं पर इतना खर्च कितना जायज है। यह पैसा कहां से आ रहा है, यह सच समाज जानता है और जानना भी चाहता है। यदि इससे यह लगता है कि कार्यताओं में कोई सन्देश जाएगा तो गलत है। कार्यकर्ता को पता है कि चने व सत्तू खाकर चुनाव लड़ने का भी इतिहास रहा है। किसी भी पार्टी की पूरी मानसिकता सुविधाभोगी हो जाना अच्छा संकेत नहीं है। जो नेता सादगी का पाठ पढ़ाते हैं उनका व्यवहार खुद पूंजीपतियों से कम नहीं होता। पाटिüयों में आजकल घोषित या अघोषित रूप से उद्योगपतियों के घरानों या दलालों के जरिए हवाई यात्रा का चलन बढ़ा है। कितने लोगों ने किसी राजनेता को सड़क से गुजरते देखा है। बरसों बीत गए स्लीपर क्लास में किसी सांसद या प्रदेश अध्यक्ष को देखे। तमाम मुद्दों पर रथ यात्रा निकालने वाले दल क्यों महंगाई के खिलाफ कोई रथयात्रा नहीं निकालते। क्यों राजनीतिक दल जनता खासकर युवाओं का सीधे सामना करने से बचते हैं। इस अधिवेशन में नेतृत्व और नीति, दोनों पर चिन्तन जरूरी है। जरूरी है कि पार्टी में इस पर भी बहस हो कि रेaी बंधु व शिबू सोरेन कब तक हमारी मजबूरी रहेंगे। यदि इन सारे मुद्दों पर बहस नहीं हुई तो गडकरी की ताजपोशी भाजपा में सिर्फ व्यçक्त बदल साबित होगी, संगठन वैसा ही रहेगा। संघ ने हमेशा व्यçक्त से ऊपर व्यवस्था और संगठन को रखा है। ऐसे में यह सन्देश जरूर जाना चाहिए कि व्यवस्था भी बदल रही है, वरना भाजपा का यह अधिवेशन भी शाही शादियों की तरह छप्पन पकवान व डेकोरेशन के लिए ही जाना जाएगा।