जिद कुछ कर दिखाने की

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Tuesday, November 30, 2010

ग्रामीण भारत के ताकतवर सात सितारे


ग्रामीण भारत के ताकतवर सात सितारे

इस महीने जब पूरा देश दीपावली की खरीदारी, पटाखों के बारूद, केंद्रीय मंत्री ए राजा के घोटाले और सोने-चांदी की बढ़ती कीमत, शेयर मार्केट के उतार चढ़ाव, भारतीय क्रिकेट टीम की जीत हार का गणित लगाने में माथा खपा रहा था, दुनिया के किसी हिस्से में नए भारत की कहानी लिखी जा रही थी। दुनिया भर के अमीरों की सूची के लिए प्रख्यात फोब्र्स पत्रिका में एक ग्रामीण भारत अपनी जगह बना रहा था। शाइनिंग इंडिया की चमक और अमेरिकी राष्टï्रपति ओबामा की भारत यात्रा और देश की प्रंशसा से गदगद मीडिया अमेरिका के गुण गा रहा था। ठीक उसी वक्त अमेरिका की चमकीली ईमारत में तमाम विदेशी एक्सपर्ट भारत के आम आदमी के अविष्कारों की इबारत को रंगीन पन्नों पर लिख रहे थे। देव दीपावली के दो दिन पहले फोब्र्स ने ग्रामीण भारत के सात शक्तिशाली लोगों की सूची जारी की। ये वे लोग हैं जिन्होंने किताबी ज्ञान और डिग्री के बजाए अपने अनुभव, आम आदमी की तकलीफों को समझा और उन तकलीफों को दूर करने में जुट गए। इन्होंने अपनी स्मृतियों को आधार बनाया और भारतीय पुराणों के इस वाक्य को सार्थक कर दिया कि - स्मृति को अविष्कार में बदलने वाले ही देवता कहलाते हैं।
ये सातों भारतीय आधुनिक भारत के सप्तऋषि हैं । ऋषि शहरी जीवन से दूर बिना लाभ हानि की चिंता किए समाज में ज्ञान के विस्तार के लिए समाधि लगाए रहते थे। ठीक वैसे ही इनका काम हैं। सुदूर गांवों में अपने ें कर्म से इन अविष्कारकों ने भारतीय समाज को अपने यंत्रों का वरदान दिया। खास बात यह है कि इस सूची में शामिल तीन के नाम मनसुखभाई हैं। मनसुखभाई जगनी, मनसुखभाई पटेल, मनसुखभाई प्रजापति, अंशू गुप्ता, रामाजी खोबरागढ़े, मदनलाल कुमावत, चिंताकिंडी मल्लेशाम ये वो नाम हैं जिन्होंने काम से अपने नाम को सार्थक किया। इन्होंने ऐसे सवालों के जवाब ढूंढ निकाले हैं जो हमारे लिए अक्सर मजाक होते हैं। जैसे हममें से ज्यादातर लोग मटके को गरीबों का फ्रीज कहते रहे हैं। बस इसी शब्द को सिद्घ करते हुए बिना बिजली का फ्रिज सामने आया तो पत्नी को तवे पर रोटी सेंकते हुए होने वाली परेशानी से फ्राइंग पेन। गांवों में अक्सर अमीर लोग गरीबों को ताना मारा करते हैं। टै्रेक्टर नहीं है तो मोटरसाइकिल से खेत जोत लो। बस इसी से प्रेरणा ली और बना दिया मोटरसाइकिल वाला ट्रेैक्टर।

आइए, सिलसिलेवार इसे देखें। राजकोट गुजरात के मनसुखभाई प्रजापति पारिवारिक पेशे से कुम्हार हैं। पीढिय़ों से मिट्टïी के बर्तन परिवार बनाता रहा है। पर मिट्टïी को सोना करने की कहावत चरितार्थ की मनसुखभाई ने। उन्होंने बिना बिजली का मिट्टïी का फ्रीज बनाया। 2001 में गुजरात में आए भूंकप में हजारों लोगों के मटके तक नष्टï हो गए थे। लोगों को उन्होंने कहते सुना इस भूकंप ने गरीबों का फ्रीज तक छीन लिया। बस यहीं से प्रजापति ने काम शुरू किया और मिट्टïीकुल नाम से बिना बिजली का फ्रीज तैयार कर दिया। 2001 से 2004 तक वे इस पर लगातार प्रयोग करते रहे। 2005 में उन्होंने अपनी पत्नी को नान स्टिक तवे के लिए परेशान होते देखा। यह महंगा था इसलिए वे खरीद नहीं पा रही थी। इसे देखते हुए प्रजापति ने मिट्टïी के पुराने तवे पर कुछ प्रयोग किए और नान स्टिक तवा तैयार कर दिया। वो भी मात्र सौ रूपए में। अमेरिकी राष्टï्रपति ओबामा ने अपनी यात्रा के दौरान संसद के सेट्रंल हाल में अपने भाषण में कहा भी था कि आप कौन हैं और कहां से आते हैं, इससे फर्क नहीं पड़ता। सभी इश्वर द्वारा प्रदत्त क्षमता से अपनी पहचान बना सकते हैं। इसका सबसे बड़ा उदाहरण डॉ भीमराव अंबेडकर हैं जिन्होंने दलित होते हुए भी भारत का संविधान लिखा। प्रजापति ने भी एक बार फिर इसे सिद्घ किया है कि क्षमतावान को कोई रोक नहीं सकता। जरूरत है उसे पहचानने की।
मनसुखभाई पटेल भी पीछे नहीं रहे। कपास के पूरे बंद और अधखुले फूल में से कपास निकालना बेहद समय लेने वाला और थका देने वाला काम है। दसवीं तक पढ़े पटेल ने इसे दूर करने के लिए कपास की छंटाई मशीन तैयार की। वे देश के ऐसे पहले ग्रामीण अविष्कारक बने जिन्हें अमेरिकी पेटेंट भी हासिल हुआ। इसके अलावा उन्होंने कपास की उन्नत तकनीक भी विक सित की। इससे किसानों का मुनाफा बढ़ा। कपास ने हमेशा ही भारत को सम्मान दिलाया है जब सिंकदर की फौज यहां आई तो सिंधु घाटी की सभ्यता और खेतों में कपास देखकर उन्होंने दातों तले उंगली दबा ली थी। वे आश्चर्य चकित थे कि जो ऊन वो भेड़ो से हासिल करते हैं हिंदुस्तानियों ने उसे खेतों में उगा रखा है।

खेत जोतने की बात आती है तो दो ही दृश्य उभरते हैं। बैल जोड़ी लेकर पसीना बहाता किसान या ट्रैक्टर पर बैठा समृद्घ काश्तकार। इस दृश्य को फे्रम से हटाने का काम किया है गुजरात के ही मनसुखभाई जगनी ने। जगनी ने मोटरसाइकिल खेत जोतने का यंत्र तैयार किया है। ये बिल्कुल ट्रैक्टर की तरह ही काम करता है। ये देा लीटर ईंधन में आधे घंटे में करीब एक एकड़ जमीन जोत सकता है। जब विदेशों में इसे दिखाया गया तो करीब 3़18 डॉलर के इस ट्रैक्टर को सबने सराहा। इसे 325 सीसी की मोटरसाइकिल पर बनाया गया है और पिछले हिस्से में दो पहिए लगाए गए ताकि ट्रैक्टर जैसा काम कर सके। चार साल के लगातार परीक्षण के बाद तैयार इस अविष्कार को नाम दिया गया है बुलेट हल।

अपनी अंगुलियों को दर्द देकर लोगों को सुंदर कपड़ा देने वाले बुनकरों की जिंदगी को खूबसूरत बना रहे हैं आंध्र पद्रश के चिंताकिंडी मल्लेशाम। उनके व्दारा तैयार लक्ष्मी आसू मशीन ने बुनकरों को लूम की खट- -खट से मुक्ति दिलाई है। एक साड़ी तैयार करने में बुनकरों को हजारों बार हाथ घुमाना पड़ता था। नई मशीन में उन्हें सिर्फ धागे एडजस्ट करना होते हैं। पहले बुनकर पूरा दिन काम करके सिर्फ एक साड़ी का मटेरियल तैयार कर पाते थे, अब वे एक दिन में 6 साड़ी तैयार कर सकते हैं। पर दुर्भाग्य है कि देश में बुनकरो की हालत इतनी खराब है कि वे इस मशीन को भी नहीं खरीद पा रहे हैं। सरकारी दावे के अलावा फिल्म स्टार आमिर खान और करीना कपूर भी थ्री इडियट के प्रमोशन के दौरान बुनकरों के घर पहुंचे थे और उनके लिए कुछ करने का वादा किया था। आमिर ने करीना को एक साड़ी भी गिफ्ट की थी। अभी भी बुनकरों की पहुंच से यह मशीन दूर है।
एक तरफ देश में कपड़ा बुनने वाले दुदर्शा के शिकार है दूसरी तरफ लाखों ऐसे लोग हैं जिन्हें पहनने को कपडे तक नसीब नहीं है। गरीब बच्चे सड़कों पर ठंड में रात काटते हैं। ऐसी परेशानियों को महसूस करते हुए समाजसेवी अंशू गुप्ता ने गूंज संस्था के जरिए गरीबों को कपडे उपलब्ध करवाने का काम शुरू किया। फोब्र्स की सूची में वे भी शामिल हैं। अंशू अमीरों के पुराने कपड़ो को इक_ïा कर गरीबों में बंटवाने का जिम्मा संभाल रहे हंै। उनकी संस्था प्रतिमाह करीब 30 टन कपड़े इक_ïा कर बीस राज्यों में बंटवाते हैं। भारतीय समाज की इस पीड़ा को देखते हुए ही गांधीजी ने केवल एक कपड़ा पहनने का संकल्प लिया था।

राजस्थान के सीकर के मदनलाल कुमावत ने भी ज्ञान के लिए डिग्री जरूरी नहीं इसे सिद्घ किया है। चौथी कक्षा तक पडे कुमावत ने एक ऐसा थ्रेशर विकसित किया है जो कई फसलों के लिए काम आ सकता है। इसे पेटेंट केलिए आवेदन दिया हुआ है।

खेती, कपड़े के उपकरण बने हैं तो भला खाने में पीछे कैसे रहा जा सकता है। महाराष्टï्र के रामाजी खोबरागढ़े ने चावल की एक नई प्रजाति विकसित की है। बिना किसी वैज्ञानिक सहायता के रामाजी ने इस पर काम किया। चावल की इस किस्म को एचएमटी नाम दिया गया है। इस बीज से करीब 80 फीसदी ज्यादा फसल मिल रही है। साथ ही इसका दाना बारीक और खुशबुदार है। देशभर के किसान इस चावल क्रांति का लाभ ले रहे हैं।


भारत गांवों का देश है और ग्रामीण ही इस देश की जान इसे एक बार फिर साबित कर रहे हैं हिंदुस्तानी। इसके और भी उदाहरण है जैसे कौन बनेगा करोडपति की इस सीजन की करोड़पति गृहिणी तसलीम राहत। तसलीम ने सिद्घ किया कि हाउस वाइफ ज्ञान में कम नहीं होती। एशियाड में इलाहबाद केआशीष कुमार, नासिक की बेटी और वाराणसी की बहू कविता राउत और रायबरेली की सुधा ने दौड़ में देश का नाम रोशन किया। भारत की इसी ताकत ने दुनिया केदादा को भी बोलने पर मजबूर किया जयहिंद।

1 comment:

Arun Aditya said...

वाकई इनकी जिंदगी लाइव है।
बधाई।